HI/690424 बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"वर्तमान समय में हम कृष्ण के साथ अपने शाश्वत संबंधको भूल रहे हैं। तत्पश्चात, अच्छी संगति के द्वारा, निरंतर जप, श्रवण, स्मरण से, हम अपनी पुरातन चेतना को पुनः जागृत करते हैं। इसे कृष्ण भावनामृत कहते हैं। इसलिए विस्मरण अद्भुत नहीं है। स्वाभाविक है, हम भूल जाते हैं। परंतु यदि हम निरंतर संपर्क बनाए रखते हैं, तो हम भूल नहीं सकते हैं। इसलिए कृष्ण भावनामृत आंदोलन, भक्तों का संग, तथा जप, शास्त्र की निरंतर पुनरावृत्ति का संघ है, जो हमें कृष्ण को भूलने नहीं देता तथा हमें हमारी वास्तविक चेतना में रखता है।" |
690424 - बातचीत - बॉस्टन |