HI/690512 - बलभद्र को लिखित पत्र, कोलंबस
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
318 पूर्व 20 वीं एवेन्यू
कोलंबस, ओहियो 43201
12 मई, 1969
मेरे प्रिय बलभद्र,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे दिनांक 6 मई, 1969 के पत्र के लिए तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ और मैंने ध्यानपूर्वक उसे पढ़ लिया है। मैं समझ पा रहा हूँ कि तुम हवाई में हमारे आंदोलन की सहायता करने के लिए बहुत ही अच्छे ढ़ंग से, सच्चाई के साथ कार्य कर रहे हो और यह मेरे लिए बहुत बहुत उत्साहप्रद है। कृपया ऐसे ही मनोभाव के साथ आगे बढ़ते रहो और कृष्ण अवश्य ही तुम्हें, तुम्हारे अन्दर से, वह सारी समझबूझ प्रदान करेंगे, जिससे कि तुम सर्वश्रेष्ठ शैली में उनकी सेवा कर सको। जहां तक तुम्हारा, अपने शरीर का भली-भांति पोषण करने का, प्रश्न है, तो मैं सोचता हूँ कि यदि तुम खानपान में संयम रखो, ठीक मात्रा में नींद लो और स्वच्छता के सुझाए गए मापदंडों*, प्रतिदिन दो बार स्नान, करते रहो, तो तुम अपना स्वास्थ्य अच्छा बनाए रख पाओगे। हालांकि जबतक यह भौतिक शरीर है, तबतक कभी न कभी तो बीमारी अवश्य होगी। लेकिन हमें, बिना संयम खोए, इसे सहन करना ही होगा। वास्तव में, जो वैष्णव यह जानता है कि वह यह शरीर नहीं है, वह इसकी उपेक्षा नहीं करता, बल्कि बहुत यत्नपूर्वक इसका ध्यान रखता है जिससे वह कृष्ण की सेवा में इसका उपयोग कर पाए। उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति इस बात को जानता है कि उसकी गाड़ी वह स्वयं नहीं है, तो भी वह अपनी गाड़ी की उपेक्षा नहीं करता। बल्कि वह अपनी गाड़ी की देखरेख करता है ताकि वह उसके काम में आए। इसीलिए हमें, अवश्य ही, अपने शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने का खयाल तो रखना ही चाहिए। लेकिन जब कभी बीमारियां या कोई अन्य अनिवार्य परेशानियां आतीं हों, तो हमें ऐसी कठिनाईयों से क्षुब्ध नहीं हो जाना चाहिए। चूंकि वास्तव में, ये कठिनाईयां, कुछ क्षणभंगुर अनुभूतियां मात्र ही हैं। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षर)
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
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