HI/690525 - मंडली भद्र को लिखित पत्र, न्यू वृंदाबन, अमेरिका

मंडली भद्र को पत्र


त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ

केंद्र: न्यू वृंदाबन
       आरडी ३, माउंड्सविल, डब्ल्यू. वर्जीनिया
       २६०४१
दिनांक......मई २५,...................१९६९

मेरे प्रिय मंडली भद्र,

कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपके दिनांक मई १४, १९६९ के पत्र की प्राप्ति की सूचना देना चाहता हूं, और मैंने विषय को ध्यान से नोट कर लिया है। इस समय मैं न्यू वृंदाबन में रह रहा हूं और यह हमारी सामुदायिक परियोजना को विकसित करने के लिए एक बहुत अच्छा स्थान है। भक्तों के लिए बड़े-बड़े मंदिर और मकान बनाने के लिए पर्याप्त जमीन है। गायों के चरने के लिए चरागाह भूमि, और पर्याप्त घास और सब्जियां हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आपने पहले से ही भगवद् गीता की पृष्ठभूमि का अनुवाद कर लिया है, और आप इसे हैम्बर्ग भेज चुके हैं। वहाँ के लड़के बहुत मेहनत कर रहे हैं, और हाल ही में उन्होंने मुझे अपनी संकीर्तन गतिविधियों के बारे में बताते हुए कुछ अखबारों की कतरनें भेजी हैं। वे किसी भी समय आपके वहां पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं। जयगोविंद को लेआउट के काम का कुछ अनुभव है, और जब आप वहां जाएंगे तो आपको इसे संयुक्त रूप से करना होगा। तब तक लेआउट के बारे में उनके साथ पत्राचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है, और इसलिये मामले में देरी हो सकती है। मैंने उन्हें पहले से ही सूचित कर दिया है कि जब आप वहां पहुंचेंगे तो आप मुख्य संपादक होंगे, और आपका नाम अखबार के संपादक के रूप में उल्लेख किया जाना चाहिए। वहां के लड़के बहुत विनम्र हैं, और मुझे विश्वास है कि जब आप वहां जाएंगे तो सब कुछ अच्छे सहयोग से किया जाएगा।

मैं आनंद को भी पत्र लिख रहा हूं, और आप कृपया उन्हें इसके साथ संलग्न पत्र सौंप दें। आनंद के पास अच्छा अनुभव है, और आपने यह भी देखा है कि हम कैसे मंदिर में देवताओं की पूजा करते हैं और प्रसादम चढ़ाते हैं, इसलिए आप कृपया उसी तरह अनुसरण कर सकते हैं। लेकिन हम हर चीज में भक्ति करते हैं और ईमानदारी ही असली चीज है। संस्कृत में एक शब्द है; भावग्राही जनार्दन: इसका अर्थ है कि भगवान भक्ति भाव से सेवा स्वीकार करते हैं। अगर हम भक्ति प्रेम में भगवान को कुछ अर्पित करने में ईमानदार हैं, तो वे उसे स्वीकार करेंगे। प्रक्रिया बहुत सही नहीं होगी, परन्तु हमारी इच्छा ईमानदार होने के कारण, वे हमारे प्रसाद को स्वीकार करते हैं। भगवद् गीता में भी इसकी पुष्टि की गई है कि वह भक्तों से खाद्य पदार्थों को स्वीकार करते हैं क्योंकि वे उन्हें पूर्ण प्रेम और स्नेह से अर्पित किए जाते हैं। यह आवश्यक है।

आपके पत्र के लिए एक बार फिर मैं आपको धन्यवाद देता हूं, और आशा करता हूँ कि आप अच्छे हैं।

आपका नित्य शुभचिंतक,

ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी