HI/690720 - तमाल कृष्ण को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
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1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड बुलेवार्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
20 फरवरी, 1970
मेरे प्रिय तमाल,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 15 फरवरी, 1970 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। मेरी तुमसे पहली प्रार्थना यह है कि तुम श्रीमूर्तियों के दानकर्ता सज्जन, श्री गोय्ल से मूर्तियों के निर्माता अथवा प्रदायक का पता ज्ञात करलो। मैं जानता हूँ कि मूर्तियां जयपुर, भारत से पंहुचाई गईं थीं किन्तु मैं पंहुचाने वाले का पता नहीं जानता। तो कृपया यह उनसे लेकर तुरन्त मुझे भेजो।
तुम्हारे पत्र की बाकी सारी बातों से मैं सहमत हूँ और कृपया इसी प्रकार से कार्यक्रम पूरा करो। हमें अपने सिद्धांतों का अनुसरण अवश्य ही करना है। हम संकीर्तन करने के लिए कहीं भी जा सकते हैं, लेकिन उसको करने की प्रणाली बहुत सख्ती से निम्नलिखित क्रम में ही हो : सबसे पहले हम कीर्तन एवं नृत्य करें, फिर अपने दर्शन पर एक छोटा वक्तव्य दें, हमारी पुस्तकों एवं पत्रिकाओं को प्रचारित करने और उनकी बिक्री का प्रयास करें और फिर अन्त में पुनः कीर्तन व नृत्य करके प्रसादम वितरण के साथ सभा समाप्त करें। सामान्यतः हमारे पास कार्यक्रम के संचालन हेतु कम से कम एक घंटा या उससे अधिक समय होना ही चाहिए।
जहां तक स्वयं हमारी बात है तो हम में से प्रत्येक को, प्रण के अनुरूप माला पर जप और हमारी गतिविधियों के प्रत्येक विभाग में अनुशासनिक नियमों का पालन करना ही होगा और इससे हमें हमारे श्रोतागणों को अपने लक्ष्यों एवं प्रयोजनों के बारे में विश्वास दिलाने की आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होगी। हमारे प्रत्येक केन्द्र में एक कुछ ऐसा भक्त होना ही चाहिए जो शास्त्रों में पारंगत हो ताकि वह विद्वानों व दार्शनिकों से मिल सके और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें बहुत बल के साथ हमारे दर्शन एवं आंदोलन के बारे में विश्वास दिला सके।
मैं यह जानकर बहुत हर्षित हूँ कि लंदन मंदिर की सजावट दिन प्रतिदिन बेहतर की जा रहीं हैं और विग्रहों के पास सुन्दर परिधान व आभूषण हैं।
जहां तक क्षीरोदकशायी की बात है, या फिर कोई भी और नव आगंतुक हो, तो उन्हें थोड़ी छूट दी जानी चाहिए। और फिर कुछ समय बाद जब वह हमारे सिद्धांतों से अभ्यस्त हो जाए तो हमें पेंच कस देना चाहिए। मेरे हिसाब से इनके साथ व्यवहार के लिए यह इशारा काफी होगा।
ब्रह्मानन्द एवं अद्वैत कल यहां आ चुके हैं और मैं उन्हें हमारी आने वाली छपाई संबंधित गतिविधियों के बारे में सलाह दे रहा हूँ। वे पहले ही ईशोपनिषद् पुस्तिका की छपाई बहुत अच्छे से करा चुके हैं और दाम भी बहुत सस्ता है। तुम बॉस्टन से आग्रह कर सकते हो की वे लंदन में विक्रय हेतु तुम्हें वहां प्रतियां भिजवाएं।
कृपया देखना कि बीटीजी के जर्मन व फ्रांसीसी संस्करण जल्द से जल्द प्रकाशित हों। मैं आशा करता हूँ कि हंसदूत तुमसे अब तक मिल चुका होगा और जब तुम उसके साथ में जर्मनी जाओगे तो उसे वरिष्ठतम सदस्य होने के नाते वहां के केन्द्र का प्रेसिडेंट नियुक्त कर दिया जाएगा। मैं यह जानकर इतना खुश हूँ कि तुम, जितना जल्दी हो सके, लंदन के हिप्पी इलाके में एक और केन्द्र खोलने की आशा कर रहे हो। जब मैं लंदन में था, मैं ऑक्सफोर्ड गया था और वहां बहुत पर एक सभा बहुत सफल रही थी। इसलिए मैं सोचता हूँ कि हमारी गतिविधियों के लिए ऑक्सफोर्ड एक अच्छा केन्द्र रहेगा।
कृपया मेरे आशीर्वाद वहां सारे युवक-युवतियों को देना और अपनी आगे की प्रगति के बारे में मुझे सूचित रखना। कृष्ण पांडुलिपि मैसर्स दाई निप्पोन कं. को पहले ही छपाई के लिए सौंपी जा चुकी है। आशा करता हूँ यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षर)
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
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