HI/690731 - श्यामसुंदर को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
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ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
31 जुलाई, 1969
मेरे प्रिय श्यामसुन्दर,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे दिनांक 25 जुलाई, 1969 के पत्र के लिए तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ और उसे पढ़ कर मुझे बहुत उत्साह मिला है। लेकिन, उसी समय मुझे गुरुदास का भी एक पत्र प्राप्त हुआ, जो बहुत उत्साहवर्धक नहीं था। उसने मुझे हमारे रथयात्रा उत्सव के आयोजन में आई परेशानी के बारे में बताया और मैं मेरे उत्तर की एक प्रति यहां संलग्न कर रहा हूँ। मेरे पत्र का सार है कि निराशा की कोई बात नहीं है और यदि संभव हो, तो तुम इस समारोह का आयोजन जन्माष्टमी के दिन कर सकते हो। तुम्हारे पत्र में दिए गए विवरण से जान पड़ता है कि रथ के ढ़ांचे का भार, उसके पहियों द्वारा ढ़ोए जाने के लिए बहुत अधिक था। गुरुदास के पत्र से यह पता नहीं चला कि तुम सबने छोटे स्तर पर किसी समारोह का आयोजन भी किया या नहीं। पर किसी भी दशा में, मैं सोचता हूँ कि हमें इस कृष्ण की कृपा ही मानना चाहिए कि परेशानी यात्रा की शुरुआत में ही आ गई और न कि जब रथ किसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर होता। बिलकुल भी निराश न हो। कृष्ण की योजना के अनुसार, सबकुछ सर्वश्रेष्ठ रूप से ही होगा। हमें बस बहुत गंभीरता के साथ, पूरी तरह भगवान की कृपा पर निर्भर रहते हुए कार्य करना है। और ऐसे मनोभाव के साथ में हम बहुत द्रुत गति से कृष्णभावनामृत में प्रगति कर सकते हैं। यदि तुम्हें लगता है कि तुम जन्माष्टमी के उत्सव का आयोजन कर पाओगे, तो मैं तुम्हें इस बारे में और निर्देश दूंगा कि यह किस प्रकार किया जाए।
मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुमने हरे कृष्ण की इतनी सुन्दर रिकॉर्डिंग बनाई है और हो सकता है कि बीटल्स की कंपनी उसे रिलीज़ करेगी। यदि तुम मुझे इस टेप की एक प्रति भेज सके, तो बहुत अच्छा रहेगा। और यह जानकर भी बहुत उत्साह मिलता है कि तुम्हारा मानना है कि मि.जॉर्ज हैरिसन हमारी कृष्ण पुस्तक को छपवाकर प्रसन्न होंगे। यदि इस संदर्भ में वे सहायक होते हैं, तो यह मानवता को एक बहुत बड़ी सेवा होगी। इस पुस्तक के रूप में हम एक अनोखा योगदान दे रहे हैं। एक ऐसी पुस्तक जो भगवान की गतिविधियों का विवरण देती हो। अभी तक इतना उच्च योगदान देने वाली कोई भी पुस्तक, पाश्चात्य जगत में एक मान्यता प्राप्त शैली में प्रस्तुत नहीं गई है। यदि लोग बस यह पुस्तक पढ़ लें, या फिर इसमें मौजूद अनेक चित्रों को ही देख लें, तो मात्र उसी से उनके जीवन को बहुत बड़ा आध्यात्मिक लाभ होगा।
मैंने जर्मनी में कृष्ण दास को लिखा है और वे कब मेरा वहां पर स्वागत कर सकते हैं, इस संदर्भ में मैं उनके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। तो जर्मनी में अपना काम निपटाने के पश्चात्, शायद जन्माष्टमी के दिन तक, मैं अवश्य ही लंदन में तुम्हारे मन्दिर आऊंगा। और फिर तुम सभी को दोबारा देखकर अच्छा लगेगा। कृपया तुम्हारी धर्मपत्नी मालती व तुम्हारी नन्ही पुत्री सरस्वती को मेरे आशीर्वाद देना। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षर)
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