HI/690812 - जयपताका को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
12 अगस्त, 1969,
मेरे प्रिय जयपताका,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 7 अगस्त, 1969 का पत्र प्राप्त हुआ और मैंने उसे पढ़ लिया है। जहां तक नरोत्तमदास का प्रश्न है, तो हमारी नीति होनी चाहिए कि जहां तक संभव हो हमें सदस्यों को रखे रखना है। हमें सीधे-सीधे यह नहीं कहना चाहिए कि –तुम्हें जाना ही होगा-। यह हमारी नीति नहीं है। यदि वह लॉस ऐन्जेलेस में मुझसे मिलने आता है तो मैं उससे बात कर जानने का प्रयास करूंगा कि उसकी कठिनाई क्या है। जहां तक उस गोष्ठी की बात है जहां तुम्हें आमंत्रित किया गया है, तो वह बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है। हमारा बल हमेशा संकीर्त्तन टोलियों पर होना चाहिए। ये योग समाज बेकार के हैं। यदि तुम जाते हो, तो उनका खाना मत खाना। हम ऐसा कुछ भी नहीं खा सकते जो कृष्ण को अर्पण न किया गया हो और हम कृष्ण को ऐसा कुछ भी अर्पण नहीं कर सकते जो किसी भक्त द्वारा नहीं पकाया गया हो। मुझे आशा है कि इससे तुम्हारे सामने बात स्पष्ट हो गई होगी। दयाल निताई के संदर्भ में मैं बताना चाहता हूँ कि, मैं उमापति को निर्देश दे रहा हूँ कि फ्रेन्च बीटीजी में प्रकाशन हेतु उसे लॉस ऐन्जेलेस से अनूदित लेख व निबन्ध भेजे। तो अब दयाल निताई के पास संकीर्त्तन टोली में जाने हेतु और अधिक समय रहेगा। तुमने भगवद्गीता यथारूप से एक उद्धरण के बारे में पूछा है। वह कथन है कि भौतिक शक्ति ब्रह्मन है। न कि ब्रह्मा। ब्रह्मन अर्थात् चित्। ब्रह्मा एक ब्रह्माण्ड के पहले जीव हैं और उनके नाम के अन्त में कोई न नहीं है।
कृपया अन्यों को मेरे आशीर्वाद देना। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
पी.एस. ङाल ही में हवाई के एक अखबार में छपे एक पुस्तक आलोचन की कुछ प्रतियां मैं यहां संलग्न कर रहा हूँ। तुम्हें नज़दीकी अखबारों के पास जाकर उनसे इसी प्रकार हमारी पुस्तकों की समीक्षा करने का आग्रह करना चाहिए। और साथ ही तुम इन समीक्षाओं को लेकर नज़दीकी पुस्तक भण्डारों पर जाओ और प्रयास करो कि वे हमारे कृष्णभावनामृत साहित्य को रखें।
- HI/1969 - श्रील प्रभुपाद के पत्र
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