तो कृष्ण का नाम और कृष्ण कृष्ण भिन्न नहीं है। तो जैसे ही मेरी जिह्वा कृष्ण के पवित्र नाम का स्पर्श करती है, इसका अर्थ है वह तुरंत कृष्ण का संग करती है। तो यदि तुम इस मन्त्र हरे कृष्ण का कीर्तन करके निरंतर स्वयं को कृष्ण से समबद्ध रखोगे, तब तनिक कल्पना करो किस प्रकार तुम इस विधि के द्वारा सरलता से शोधित हो रहे हो, कीर्तन, जिह्वादौ, जिह्वा को कीर्तन में नियुक्त करने से। और तुम्हारी जिह्वा बहुत स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद लेना चाहती है। तो कृष्ण अति दयालु हैं। उन्होंने तुम्हें हज़ारों स्वादिष्ट व्यंजन प्रदान किये हैं, उनके द्वारा भोग लगाए हुए अवशिष्ट खाद्य पदार्थ। तुम (भी) पाओ। इस प्रकार से, यदि तुम बस यह दृढ संकल्प बनाते हो कि जो कुछ भी कृष्ण को अर्पित नहीं हुआ है उसे मैं अपनी जिह्वा को आस्वादन नहीं करने दूंगा, और मैं अपनी जिह्वा को सदैव हरे कृष्ण कीर्तन करने में नियुक्त करूँगा, तब सम्पूर्ण सिद्धि तुम्हारी पकड़ में है।
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