"कृष्ण भावनामृत का अर्थ है, भगवान की दया से जो कुछ भी प्राप्त होता हैै, हमें संतुष्ट होना चाहिए। बस। इसलिए हम यह निर्धारित करते हैं कि हमारे छात्रों का विवाह होना चाहिए। क्योंकि यह एक समस्या है। यौन क्रिया एक समस्या है। तो यह विवाह हर समाज में, चाहे हिंदू समाज हो या ईसाई समाज, या मुस्लिम समाज, विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के अंतर्गत सम्पन्न किया जाता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को संतुष्ट होना चाहिए: 'ओह, भगवान ने इस पुरुष को मेरे पति के रूप में भेजा है'। और पुरुष को सोचना चाहिए कि 'भगवान ने यह स्त्री भेजी है, यह अच्छी स्त्री है, भगवान ने इसे मेरी पत्नी के रूप में भेजा है'। हमे शांतिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। परंतु यदि मैं चाहूँ, 'ओह, मेरी पत्नी अच्छी नहीं है, वह लड़की अच्छी है', 'यह व्यक्ति अच्छा नहीं है, वह व्यक्ति अच्छा है', तब सारी चीज़ें बिगड़ जाती है।"
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