"दीक्षा का अर्थ है भगवान विष्णु के साथ अपने शाश्वत संबंध को पुनः स्थापित करना तथा इस प्रकार स्वयं को इस भौतिक चंगुल से बाहर निकाल कर भगवद्धाम लौट जाना है, जो हमारा वास्तविक निवास स्थान है तथा इसके अतिरिक्त वहां शाश्वत परमानंद एवं ज्ञान रूपी जीवन का आनंद लेना। यह ही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। कृष्ण भावनामृत आंदोलन का अर्थ है स्वयं को सदैव विष्णु भावनामृत या कृष्ण भावनामृत में रखना। तब यदि मृत्यु के समय व्यक्ति अपनी चेतना कृष्ण भावनाभावित रखता है तो उसे तुरंत विष्णु-लोक या कृष्ण-लोक में स्थानांतरित कर दिया जाएगा और उसका मानव रूपी जीवन सफल हो जायेगा।"
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