"हम भ्रम की बात करते हैं, जिसे माया भी कहते हैं। यह समझना एक भ्रम् है कि ,"मैं यह शरीर हूं, और इस शरीर के संबंध में कुछ भी, सभी माया है" मेरा किसी खास महिला के साथ विशेष संबंध है, इसलिए मुझे लगता है, "वह मेरी पत्नी है। मैं उसके बिना नहीं कर सकता।" या दूसरी महिला जिससे मैंने जन्म लिया है, "वह मेरी माँ है।" इसी तरह पिता, इसी तरह से संतान। इस प्रकार, देश, समाज, अधिक से अधिक मानवता। परंतु ये सब चीजें भ्रम हैं, क्योंकि वे शारीरिक रूप पर आधारित है। यस्यात्मा-बुद्धी त्रि कुनपे त्रि-धातुके सा ईवा गो-खरह ( श्री.भा. १0.८४.१३) जो इस भ्रम की स्थिति से गुजर रहे हैं, उनकी तुलना गाय और गधों से की जाती है। इसलिए हमारा पहला कर्त्तव्य जीवन की इस भ्रम की स्थिति से लोगों को जगाना है। इसलिए बैक टू गोडहेड पत्रिका विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिए है। यह ही कारण है कि प्रथम स्थिति के लिए, आत्मज्ञान की पहली स्थिति में, हम सामान्य जन को वापस भगवद्धाम की ओर लौटने पर जोर दे रहे हैं।"
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