HI/700213 - जयपताका को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
13 फरवरी, 1970
मेरे प्रिय जयपताका,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 7 फरवरी 1970 का पत्र प्राप्त हुआ है।
मुझे जानकर खुशी है कि टोरोंटो केन्द्र की सफलता के इतने अच्छे आसार हैं। इस संकीर्तन आंदोलन का प्रसार करने के बारे में यदि हम बस थोड़े गंभीर हो जाएं, तो कृष्ण ने हमारी सफलता पक्की कर ही रखी है। यह अच्छी बात है कि टोरोंटो में युवाओं की एक बड़ी जनसंख्या है क्योंकि यह युवा पीढ़ी ही है जो हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन की सर्वाधिक सराहना करती है। तो तुम अपना पूरा प्रयास करो कि ये सब भगवान चैतन्य के संकीर्तन के प्रसार हेतु हमारे साथ जुड़ने को प्रवृत्त हों।
मैं यह जान कर प्रसन्न हूँ श्रीपति के निर्देश में अब मॉन्ट्रियल में सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा है। और इसी प्रकार टोरोंटो के नए केन्द्र के संचालन के विषय में वह रक्तक भी बहुत प्रतिभाशाली है, चूंकि तुम अब अपने विषय में अनिश्चितता में हो कि तुम्हें स्वयं क्या करना चाहिए। तुम्हारे पत्र से मालूम पड़ता है कि टोरोंटो में और भी अधिक कृष्ण भावनाभवित गतिविधियों की संभावना है, तो क्यों न वहां रहकर रक्तक की सहायता की जाए। हमारा मुख्य कार्य है सेवा। मन्दिर का संचालन होना चाहिए किन्तु प्रेसिडेन्ट होना हमारा कार्य नहीं है। हमारा काम है कृष्ण भावनामृत का प्रचार। तो यदि तुम्हारी मौजूदगी सहायक है तो तुम कुछ समय के लिए रह सकते हो।
अब हमें आवश्यकता है कुछ आदमियों की, जो कि शास्त्रों के सारे तात्पर्य जानते हों, ताकि वे उनको दिए गए किसी भी प्रश्न श्रृंखला का सामना कर पाएं।......... यह बहुत महत्तवपूर्ण कार्य है, और मैं चाहता हूँ कि मेरे सारे शिष्य इस प्रकार संपूर्ण रूप से बहुश्रुत हों। प्रत्येक दीक्षित भक्त के लिए पहला कार्य है प्रतिदिन हर हाल में सोलह माला जप, और अनुशासनिक नियमों का कठोरता से पालन। और हमारे साहित्य का बहुत एकाग्रता से अध्ययन किया जाना चाहिए। हमने कृष्ण भावनामृत का सारा दर्शन हमारी भगवद्गीता यथारूप, श्रीमद् भागवतम्, भगवान चैतन्य की शिक्षाएं, कृष्ण एवं अन्य छापी जा रही पुस्तकों में प्रस्तुत कर दिया है। तो कक्षाएं एवं स्वाध्याय विषयवस्तु को भेदते हुए किया जाना चाहिए। कृपया ध्यान दो कि सभी भक्त इन नियमों का पालन कर रहे हैं। यह कार्यक्रम हमारे आध्यात्मिक विकास का आवश्यक आधार है। यदि जप एवं नियमों का पालन, निरपराध रूप से, गंभीरता के साथ किये जाएं तो सभी प्रश्न और सिद्धान्त के संदेहास्पद बिन्दु, भक्त के ह्रदय के भीतर से कृष्ण की अनुभूति द्वारा शान्त कर दिये जाएंगे।
(पृष्ठ उपलब्ध नहीं?)
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