HI/700302 - यमुना एवं गुरुदास को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
2 मार्च,1970
मेरे प्रिय गुरुदास व यमुना,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 17 फरवरी, 1970 का पत्र मिला और मैंने उसे बहुत रुचि के साथ पढ़ा है। हम निराकारवादी नहीं हैं। वर्तमान परिस्थितियों में हमारे पास भक्तिमय सेवा करने के लिए नाना प्रकार के दृष्टिकोण हैं। रूप गोस्वामी के “शिक्षामृत” में कहा गया है कि कृष्णभावनामृत में उन्नत जीवन का अर्थ है कि व्यक्ति यह बहुत गंभीरता से विचार करता रहे कि कहीं जीवन का एक क्षण भी भक्तियोग से वंचित तो नहीं है। इसे कहते हैं समय के दुरुपयोग से भय की भावना।
व्यक्ति को बहुत ध्यानपूर्वक निश्चित करना चाहिए कि किस प्रकार से जीवन का प्रत्येक क्षण भगवान की सेवा में संलग्न है। गोस्वामी इस कार्यशैली में बहुत उन्नत थे और इसीलिए उनके बारे में कहा गया है कि ”निद्राहार विहार विजितौ”, अर्थात जिन्होंने आहार, निद्रा व संभोग पर विजय प्राप्त कर ली हो। विचार यह है कि इस भौतिकतावादी कार्यकलाप से समय बचा करके उसे कृष्ण की सेवा में लगाना। जब हमारी चिंताएं ये हों कि कैसे जीवन का इस प्रकार सदुपयोग हो तो वह अव्यर्थ कालत्वम् अर्थात ”व्यर्थ किए बिना जीवन का सदुपयोग” की स्थिति है। इससे अगली स्थिति है नामगाने सदा रुचि अर्थात “भगवान के नाम के निरंतर जप के प्रति आकर्षण” और प्रीति तद्वासती स्थले ”मन्दिर अथवा तीर्थस्थान में वास करने से आनन्दित होना।“ तो मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम क्रमशः इस स्थिति में आ रहे हो। ध्यानपूर्वक ऐसे ही आगे बढ़ो। स्वयं इसकी अनुभूति करने का प्रयास करो और अपने सभी छोटे भाई बहनों को यह पद्धति सिखाओ।
कृष्ण भावनामृत का अर्थ है कृष्ण के साथ पूर्ण सहयोग और कृष्ण माने उनके सभी सहचरों के साथ में। यह हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए। जैसे जब हम एक वृक्ष की बात करते हैं तो उसमें जड़ें, तना, शाखाएं, पत्ते, फूल- सबकुछ सम्मिलित है। इसी प्रकार कृष्ण से प्रेम का अर्थ है उनके नाम, यश, गुण, सहचर, धाम, भक्त इत्यादि सबके साथ उनसे प्रेम।
अब मैंने तुम्हें वर्तमान वर्ष गौराब्द 484 के सारे उत्सवों की एर प्रति भेज दी है। मुझे आशा है कि अबतक तुम्हें वह श्यामसुन्दर के माध्यम से प्राप्त हो चुकी होगी। इसे कैलेण्डर के रूप में प्रकाशित किया जाएगा, पर मैंने तुम्हें एक ऐडवांस प्रति भेज दी है।
तुम सबको “बैक टू गॉडहेड” में प्रकाशन हेतु लेख लिखने के लिए समय निकालना चाहिए। यह संस्कृति है। भक्तों के बारे में मैं कहना चाहुंगा कि मैं कृष्ण भावनामृत में उनके गंभीर और उत्साहपूर्ण प्रयासों के बारे में जानकर बहुत प्रसन्न हूँ। यह मेरे लिए सर्वाधिक उत्साहवर्धक है। अब इनका इस प्रकार से ध्यानपूर्वक मार्गदर्शन करो कि, ये हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन की गतिविधियों के कार्यक्रम में अधिकाधिक संलग्न हों। जहां तक प्रबंधन करने का प्रश्न है तो यह तुम्हें आपस में करना होगा चूंकि इतनी दूर से तुम्हें निर्देश देना मेरे लिए हर समय संभव नहीं है।
सहायक पुजारी के संदर्भ में, इलावती तुम्हारी सहायता के लिए प्रशिक्षित की जा सकती है, परन्तु द्विज हुए बिना वह अर्चन नहीं कर सकती। प्रणाली यह है कि केवल जो गायत्री दीक्षा की योग्यता प्राप्त हैं, वही प्रत्यक्ष रूप से अर्चा विग्रह की सेवा (यथा अभिषेक, भोग व आरत्रिक अर्पण, विग्रहों हेतु रसोई करना आदि) कर सकता है। किन्तु वह अन्य सभी रूप से तुम्हारी सहायता कर सकती है। यदि किसी कारणवश तुम आरत्रिक अर्पण नहीं कर सकते, तो वहां अन्य दीक्षित ब्राह्मण भक्त भी हैं, जो वहां अर्पण कर सकते हैं।
कृपया लंदन मन्दिर के नए भक्तों व अन्य सभी युवक युवतियों को मेरे आशीर्वाद दो। आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
एसीबीएस:डी बी
गुरुदास अधिकारी
श्रीमति यमुनादेवी दासी
इस्कॉन मंदिर
7 बरी प्लेस
लंदन डब्ल्यू.सी. 1
इंगलैंड
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
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