HI/700319 - पतित उद्धारण को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
19 मार्च, 1970
मेरे प्रिय पतित उद्धरण,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। हमारी बीटीजी पत्रिकाओं के जो छः अंक तुमने मुझे जिल्द चढ़वाकर भेजे हैं, उनके लिए मैं तुम्हार धन्यवाद करना चाहता हूँ। तुमने यह बहुत अच्छे ढ़ंग से किया है और मैं इन्हें अपनी पुस्तकों की अलमारी रखवा रहा हूँ ताकि इन्हें सहजता से देखा जा सके।
मुझे नहीं लगता कि जैसे लिफाफों को बनाने का तुमने उदार प्रस्ताव रखा है, उनकी कोई आवश्यकता होगी। लेकिन भविष्य में वर्षानुसार पत्रिकाओं को जिल्द करवाया जा सकता है और तुम जिल्द में उस साल के लेखों की एक अनुक्रमणिका भी लगा सकते हो। शीघ्र ही हमारी बीटीजी अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित की जाएगी, और अच्छा रहेगा यदि तुम उन्हें भी अंग्रेज़ी बीटीजी के संग्रहों की ही तरह जिल्द करवा सको।
मैं यह जानकर अत्यन्त प्रसन्न हूँ कि तुम्हारी कलम सृजन करने को प्रेरित है, चूंकि हमें ऐसे अनेकों बुद्धिमान लेखकों की आवश्यकता है, जो गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा हमारे विपुल वैदिक साहित्य पर की गई टीकाओं व शब्दों का सटीकता से अनुसरण करते हुए, हमारे कृष्णभावनामृत दर्शन का सुन्दर रूप से निरूपण कर पाएं। और यदि तुम हमारे साहित्यों के लेखन और प्रकाशन में अविचल उत्साह और निष्कपटता से कार्य करते रहोगे, तो कृष्णभावनामृत में तुम्हारी सफलता निश्चित है। इसीलिए, अपना आध्यात्मिक बल बनाए रखने के लिए, अनुशासनिक नियमों का सख़्ती से पालन व प्रतिदिन बिना चूके कम से कम सोलह माला का जप अवश्य करते रहो। कृष्णभावनामृत में प्रगति हेतु, हमारे दर्शन को व्यावहारिक रूप से समझ पाने के लिए, यह अनिवार्य है। और हमें मानसिक अटकलों से सदैव बचना चाहिए।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस:डी बी
श्रीमन पतित उद्धारणदास ब्रह्मचारी
इस्कॉन मंदिर
38 उत्तर बीकन स्ट्रीट
बॉस्टन, एमए 02134
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