HI/700320 - रुक्मिणी को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
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त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
1975 सो ला सिएनेगा बुलेवर्ड
लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया 90034
20 मार्च, 1970
मेरी प्रिय रुक्मिनी,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। तुम्हारे लड्डुओं के लिए बहुत-बहुत अधिक धन्यवाद। ये बहुत-बहुत अधिक स्वादिष्ट हैं और हमने बहुत स्वाद से खाए हैं। वे अभी भी रखे हैं और मैं खाता रहूंगा। विग्रह सेवा का मतलब है बहुत-बहुत साफ़ सुथरा रहना। तुम्हें प्रतिदिन दो बार स्नान करने का प्रयास करना चाहिए। मलत्याग इत्यादि के बाद स्नान व साफ़ कपड़े बदले बिना, कभी भी विग्रहों के समक्ष नहीं जाना चाहिए। प्रत्येक बार भोजन करने के पश्चात दांत मांजो और नाखून कटे व साफ़-सुथरे रखो। और प्रतिदिन विग्रह कक्ष, वेदी एवं फर्श को पूरी तरह से साफ़ करो। आरत्रिक के पश्चात, आरत्रिक की सारी सामग्री को चमकाओ। शिलावती दासी द्वारा पुजारियों के लिए लिखी गई पुस्तिका में यह सारा वर्णन है। मतलब है स्वच्छता की पराकाष्ठा—इससे कृष्ण तुष्ट होंगे।
तुम्हारे स्वप्न के बारे में मैं कहना चाहता हूँ कि यह एक बहुत बड़ी कृपा है कि कृष्ण ने तुम्हें चेता दिया। इसलिए, तुम्हें कभी भी लापरवाह नहीं होना है। सदैव सतर्क रहो और क्रमशः तुम्हें भाव की अनुभूति होगी।
कृपया अपने पति भरदराज को मेरे आशीर्वाद देना। मैं आशा करता हूँ कि तुम दोनों का स्वास्थ्य अच्छा है।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस:डी बी
श्रीमन पतित उद्धारणदास ब्रह्मचारी
इस्कॉन मंदिर
38 उत्तर बीकन स्ट्रीट
बॉस्टन, एमए 02134
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