HI/700503 - लीलावती को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस

Letter to Lilavati


त्रिदंडी गोस्वामी

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

3764 वात्सका एवेन्यू
लॉस एंजेलिस, कैल. 90034

3 मई, 1970


मेरी प्रिय लीलावती,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 28 अप्रैल, 1970 का पत्र प्राप्त हुआ है और लंदन में संकीर्तन आंदोलन का विवरण बहुत ही उत्साहवर्धक है।

मैं सोचता हूँ कि हमारी प्रत्येक विद्यार्थी दम्पत्ति इंग्लैण्ड में एक शाखा खोलने का प्रयास कर सकती है। लंदन यात्रा की हमारी पहली शाखा मुकुंद, गुरुदास एवं श्यामसुन्दर व उनकी पत्नियों ने खोली थी। उन्होंने कड़ा परिश्रम किया था और आज हमारा लंदन मन्दिर सुव्यवस्थित है। इसी प्रकार से एम्स्टरडैम, बर्मिंघम, लिवरपूल, मैन्चेस्टर आदि जैसी जगहों पर भी अनेकों मन्दिर खोले जा सकते हैं। मुझे तमाल से रिपोर्ट मिली है कि पैरिस में प्रचार बहुत अच्छी तरह हो रहा है। मात्र कृष्णभावनामृत आंदोलन से जुड़ने का आग्रह करके, उन्होंने केवल एक ही दिन में लगभग 14 भक्तों सम्मिलित कर लिया। तो तुम भी, इसी प्रकार से, अंग्रेज़ युवक-युवतियों को सदस्य बनाओ। तुम तो अच्छी तरह समझती हो कि हमारा आंदोलन, माया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा है और इसीलिए हमें अनेकों लड़ाकू सैनिकों की भर्ती करनी है। तो यह पूरे उत्साह के साथ करो।

मैं यह जानकर प्रसन्न हूँ कि बच्चे खुले वातावरण में अच्छा महसूस कर रहे हैं। तो उन्हें कुछ समय के लिए जीवन का आनंद लेने दो। जॉर्ज ने कुछ बहुमूल्य सेवा अर्पण की है। इसलिए श्यामसुन्दर उसका कुछ भला करने का प्रयास कर रहा है। हमारा यही कर्तव्य है कि जिस किसी ने भी कृष्ण की थोड़ी भी सेवा की है, उसे गंभीरता के साथ सेवा करने की पूरी सुविधा प्रदान की जाए।

तुम्हारे प्रश्न के संदर्भ में मैं बताना चाहुंगा कि, हां, कृष्ण विविध प्रकार से सदैव वृद्धि कर रहे हैं। और उनके क्षीण होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। प्रश्न के अंतर्गत श्लोक श्रीमद् भागवतम् से लिया गया है और भक्त के संबंध में कहा गया है। तात्पर्य यह है कि, यद्यपि कृष्ण परिपूर्ण हैं, यदि वे स्वयं को अपने किसी भक्त को प्रदान कर देते हैं, तो भी उनमें कोई कमी नहीं होती। इसी प्रकार से, हम कृष्ण को सर्वस्व भी दे दें, तो भी उनमें कोई वृद्धी नहीं होती।

कृपया वहां के सभी युवक-युवतियों को मेरे आशीर्वाद प्रदान करो। मैं आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

अहस्ताक्षरित

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

एसीबीएस:डी बी

श्रीमति लीलावतीदेवी दासी
इस्कॉन मंदिर
7 बरी प्लेस
लंदन, डब्ल्यू.सी. 1
इंगलैंड