HI/700715 - बलि मर्दनन को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
3764 वात्सका एवेन्यू
लॉस एंजेलिस, कैल. 90034
15 जुलाई, 1970
मेरे प्रिय बलि मर्दन,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं तुम्हारे दिनांक 8 जुलाई के पत्र को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। मैं इसे किसी भी क्षण प्राप्त करने की अपेक्षा कर रहा था।
तो तीर्थपाद वहां पंहुच गया है। यह बहुत अच्छा समाचार है। तो अब तुम सभी अनुभवशाली भक्त हो। मैंने पहले ही दो अलग-अलग पत्र, एक उपेन्द्र व एक तीर्थपाद को लिख भेजे हैं। अब मिलजुलकर अपना प्रचार कार्य करते चलो।
मैं यह जानकर प्रसन्न हूँ कि तुम बीटीजी व बुक फ़ंड के साथ अपने खाते मिलाते चल रहे हो। यही अच्छी व उचित व्यवस्था है। तो तुम इन खातों को साप्ताहिक रूप से बनाते चलो।
मैं यह जानकर भी बहुत ही प्रसन्न हूँ कि तुम्हारा मानना है कि एक मन्दिर की स्थापना के लिए मेलबॉर्न एक उपयुक्त स्थान है, और कि तुम ऑस्ट्रेलिया में मन्दिरों कि स्थापना को अपने जीवन का प्राणधन मान लेने को उत्सुक हो। हाँ, जिस प्रकार अपने गुरु महाराज की आज्ञा पर मैंने इस कार्य को अपना प्राणधन मान लिया है, वैसे ही यदि तुम मेरी इच्छाओं को प्राणधन मान लो, तो सभी कुछ तत्काल ही कृष्ण से जुड़ जाएगा। परम्परा प्रणाली का यही अर्थ है। कोई भी गतिविधि, व्यक्तिगत मामला नहीं है। वह केवल उपयुक्त माध्यम से होकर आती है, अन्यथा प्रत्येक गतिविधि कृष्ण से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। हालांकि वह गुरुदेव के माध्यम से मिलता है, किन्तु सारा कारोबार कृष्ण का ही है। ठीक वैसे ही जैसे दफ्तर का प्राधिकारी सर्वोच्च अधिकारी को प्रसन्न करने का ही एक माध्यम है।
कृपया विग्रह सेवा का प्रतिपादन बहुत उचित रूप से करो। उपेन्द्र के पास अच्छा अनुभव है। तीर्थपाद को भी अच्छा अनुभव है। उसी कार्क्रम का अनुसरण करो जो हम लॉस ऐन्जेलेस व लन्दन में चला रहे हैं। मैं सोचता हूँ कि तुम सभी को ब्राह्मण दीक्षा प्राप्त है। तो विग्रह सेवा में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। हमारी भक्तिरसामृतसिन्धु व कृष्ण पुस्तक प्रकाशित हो ही चुकी हैं। और मात्र ये दो पुस्तकें किसी को भी अनन्त काल तक कृष्णभावनाभावित बनाए रख सकती हैं।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी
(अहस्ताक्षरित)
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस:डी बी
श्रीमन् बली मर्दन दास ब्रह्मचारी
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