HI/700726 - यमुना को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
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त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
3764 वात्सका एवेन्यू
लॉस एंजेलिस, कैल. 90034
26 जुलाई, 1970
मेरी प्रिय यमुना,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 12 जुलाई, 1970 का पत्र मिला है और मैंने इसे पढ़ा है। मुझे पेड़ा भी प्राप्त हुआ है और यह बहुत बढ़िया है। मैं जानता हूँ कि तुम विग्रहों के लिए सभी कुछ बहुत ध्यानपूर्वक बनाती हो। तुम, जितनी भी हो सके, उतनी विविध प्रकार की मिठाइयाँ अर्पण कर सकती हो।
मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम्हारा प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी है और उसके फलस्वरूप, अब पुरुषों को नए केन्द्र खोलने व उनका संचालन करने के लिए प्रशिक्षण मिल रहा है। यह मेरे लिए अत्यन्त उत्साहप्रद है। तो प्रशिक्षण देने के लिए अनेकों चीज़ें हैं और मुझे विश्वास है कि तुम व गुरुदास दोनों ही इसका निष्पादन करने में सक्षम हो। तो तुम्हारा अध्ययन कार्यक्रम बहुत ही सुन्दर एवं नियमित है। मंत्रों का उच्चारण करने का प्रयास करो। लिप्यन्तरण मौजूद रहने से यह बिलकुल भी कठिन नहीं होगा। लॉस ऐन्जेलेस मन्दिर में वे प्रतिदिन, सुबह के समय, यह बहुत अच्छे से करते हैं।
हाँ, मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि ब्रह्मचारिणियां सहायक कार्य व साफ-सफाई में रत हैं। यह कार्यलाप-सफाई-ब्रह्मचारिणियों का सर्वाधिक महत्तवपूर्ण कर्त्तव्य है। चैतन्य महाप्रभू व्यक्तिगत तौर पर मन्दिर की स्वच्छता का निरीक्षण किया करते थे। और यदि उन्हें धूल एक क्षुद्र कण भी दीख पड़े तो वे कहते थे कि-अहो, तुमने ठीक प्रकार से नहीं किया है। तो कृपया, स्वच्छता के संदर्भ में, उनके चरण चिन्हों का अनुसरण करने का प्रयास करो। अच्छी तरह से सफाई करने से व्यक्ति को आध्यत्मिक जगत में किसी वैकुण्ठलोक में पदोन्नति मिल सकती है-यह बहुत ही अच्छा है।
तो तुम्हारा अपनी गुरुबहनों को प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम बहुत ही अच्छा है। इसे अच्छे ढ़ंग से करो, चूंकि तुम स्वयं अर्चना में अनुभव प्राप्त हो।इधर-उधर थोड़ा बदलाव होनो से कोई परेशानी नहीं है-प्रेम व भक्ति ही वास्तविक विषय हैं। लेकिन तुम्हारा कहना है कि जिन स्त्रियों की सन्ताने हैं, उनका दैनिक कार्क्रम अपने बच्चों के इर्द-गिर्द होता है। पारिवारिक जनों के साथ यही कठिनाई है। उनके बालक उनके जीवन में पहली पूजनीय वस्तु बन जाते हैं। क्या किया जा सकता है। तुम भाग्यशालिनी हो कि कृष्ण तुम्हारे पुत्र हैं।
मन्दिर में हाल में किए गए सुधार कार्य की जो स्लाइड तुमने भिजवाईं हैं, व बहुत ही अधिक सुन्दर हैं। लंदन से एक बंगाली सज्जन ने मुझे एक पत्र भेजा है जिसमें उसने तुम्हारे द्वारा की गईं विग्रहों की सजावट की सराहना की है। उसके वास्तविक शब्द हैं कि एक बार विग्रहों की ओर मुख करने के बाद, कोई उनसे मुख हठा नहीं सकता। मैंने भी स्लाइडें देखीं हैं और मेरी भी यही धारणा है। तो कृपया, भगवान को तुम्हारी सेवा के लिए श्रेय लेती जाओ। मैं इसके बारे में जानकर बहुत हर्षित हूँ। तुम्हारा पति इस सब में कभी तुम्हारी सहायता करता है या नहीं। मैं सोचता हूँ कि, हालांकि उसके पास पहले से ही बहुत कार्यभार है, उसे ऐसे प्रशिक्षण लेना चाहिए कि सप्ताह में एक दिन वह भी विग्रहों की सेवा का जिम्मा ले सके।
हाँ, मुझे उस स्वीडिश अखबार का आलेख प्राप्त हुआ है। मैं उसे पढ़ तो नहीं पाया, लेकिन वह बहुत अच्छा प्रतीत होता है। मुझे रथयात्रा के ऊपर भी दो लेख प्राप्त हुए हैं। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
एसीबीएस:डी एम
श्रीमति यमुनादेवी दासी
इस्कॉन मंदिर
7 बरी प्लेस
लंदन डब्ल्यू.सी. 1
इंगलैंड
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