HI/700727 - सत्स्वरूप एवं उद्धव को लिखित पत्र, लॉस एंजिलस
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
3764 वात्सका एवेन्यू
लॉस एंजेलिस, कैल. 90034
27 जुलाई, 1970
मेरे प्रिय सत्स्वरूप एवं उद्धव,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। तुम्हारे अबिव्यक्तिपूर्ण पत्रों के लिए धन्यवाद। मैंने इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ लिया है।
तुम सब मेरे बच्चे हो। मैं अपने अमरीकी युवक व युवतियों को प्रेम करता हूँ, जिन्हें मेरे गुरु महाराज ने मेरे पास भेजा और मैंने उन्हें मेरे शिष्यों के रूप में स्वीकार कर लिया। तुम्हारे देश में आने से पहले, मैंने 1959 में सन्न्यास ग्रहण किया था। बीटीजी का प्रकाशन मैं 1944 से कर रहा था। सन्न्यास लेने के उपरान्त, मैं अपने पुस्तक लेखन में अधिक व्यस्त था और न की मेरे गुरुभाईयों की तरह मन्दिर निर्माण एवं शिष्य बनाने में। मेरी इन कार्यों में अधिक रुचि नहीं थी, चूंकि मेरे गुरु महाराज, बड़े-बड़े मन्दिरों के निर्माण या कुछ कनिष्ठ शिष्य बनाने के बजाए, पुस्तक प्रकाशन बहुत अधिक पसन्द करते थे। जैसे ही उन्होंने पाया कि उनके कनिष्ठ शिष्यों की संख्या मे वृद्धि हो रही है, उन्होंने उसी समय इस संसार को त्यागने का निर्णय ले लिया। शिष्य स्वीकार करने का अर्थ है, शिष्य के जीवन के पापों को समा लेने की जिम्मेदारी उठाना।
वर्तमान समय में हमारे इस्कॉन के कार्यक्षेत्र में राजनीति व कूटनीति का पदार्पण हो गया है। मेरे कुछ ऐसे शिष्य, जिनपे मैं बहुत ही अधिक विश्वास करता था, माया के वशीभूत होकर इन बातों में लिप्त हो गए हैं। वास्तव में कुछ ऐसी गतिविधियां हुईं हैं, जिन्हें मैं अपमानजनक मानता हूँ। इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि सेवा-निवृत्त हो जाऊं और अपना ध्यान केवल पुस्तक लेखन पर केन्द्रित करूं। और कुछ नहीं। इस्कॉन प्रेस का गठन विशेषकर, केवल मेरी पुस्तकें मात्र छापने के लिए किया गया था। तो कृपया मुझे सुझाव दो कि मेरी सभा पांडुलिपियों को यथाशीघ्र छपवाने में तुम मेरी किस प्रकार से सहायता कर सकते हो। जैसे अद्वैत मेरी पुस्तकों की छपाई के लिए आवश्यक खर्चे का एक आंकलन प्रस्तुत करता है, तुरन्त ही मैं पैसा मुहैया करवा दूंगा। जहां तक धन की बात है, तो वह कृष्ण दिलवा रहे हैं। तो यदि तुम प्रेस में मरी पुस्तकों की निरन्तर छपाई मात्र करो, तो इससे मुझे बहुत आनन्द प्राप्त होगा।
इसलिए कृपया मुझे बतलाओ कि इस मामले में तुम मेरी कहां तक सहायता कर सकते हो और कौन-कौन सी पांडुलिपियां छपाई के लिए तैयार हैं। मैं सोचता हूँ कि अब मुझे अपनी पुस्तकों के प्रकाशन के अतिरिक्त सारी गतिविधियां बन्द कर देनीं चाहिएं। कृपया जवाबी डाक द्वारा इस पर प्रकाश डालो।
आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो और अपने मन्दिर के लड़के-लड़कियों को मेरे आशीर्वाद देना।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
पश्चलेख: मैं सोचता हूँ कि गलती से छापी गईं तस्वीरों को रद्द किया जा सकता है और नई छपाई की जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो इससे हमारी प्रेस के बारे में बहुत बुरी धारणा बन जाएगी।
एसीबीएस:डी एम
श्रीमन् सत्सवरूप दास अधिकारी
श्रीमन् उद्धवदा दास अधिकारी
इस्कॉन मंदिर
38 उत्तर बीकन स्ट्रीट
बोस्टन, एम
एम.ए. 02134
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