HI/700816 - हंसदूत को लिखित पत्र, टोक्यो
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त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
6-16; 2-चोम, ओहाशी
मेगरो-कू, टोक्यो, जापान
16 अगस्त, 1970
मेरे प्रिय हंसदूत,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 5 अगस्त, 1970 का पत्र मिला है। अब मैं हमारे जापान केन्द्र में ठहरा हुआ हूँ, पुस्तकों के प्रकाशन की देखरेख कर रहा हूँ, दाई निप्पॉन प्रिंटिंग कम्पनी के साथ व्यवहार कर रहा हूँ और उनके पास विभिन्न पुस्तकों व पत्रिकाओं के लिए 52,000 डॉलर तक का ऑर्डर भी दे चुका हूँ। विश्व संकीर्त्तन मंडली के भारत पंहुचने पर या उससे भी पहले इनमे से अधिकांश पुस्तकें, उधर प्रसार करने के लिए, भारत पंहुचाई जाएंगी।
तुम्हारा पिछला पत्र प्राप्त हो गया था। लेकिन पिछले कुछ महीनों से मेरा मन बहुत उदास था। मैंने इन बातों पर चर्चा नहीं करना चाहता। बस एक निवेदन करना चाहता हूँ कि गवर्निंग बॉडी कमीशन के सभी सदस्य इस संस्थान का संचालन बहुत सच्चाई के साथ करें। मैं यह जानकर पसन्न हूँ कि तुम अपने अन्य गुरुभाईयों की सहायता से न्यु वृंदावन, वहां पर हमारी भावी गतिविधियों का सुन्दर कार्यक्रम बनाने हेतु, जा रहे हो। मेरी विचारधारा है कि यह कृष्णभावनामृत आंदोलन एक बाधित जीवन की सारी समस्याएं हल कर सकता है। हम महामंत्र के जप की इस सरल प्रणाली में पूरे विश्व के लोगों को एकजुट कर सकते हैं। यह इस बात से सिद्ध हो चुका है कि, जहां कहीं भी हमने इसे आरंभ किया है, वहां पर इसे प्रसन्नता के साथ स्वीकार किया गया है।
मेरे गुरुभाई सदानन्द स्वामी के बारे में मैंने भी बहुत बातें सुनी हैं। जैसा कि तुमने भी मुझे सूचित किया है। पर मैं सोचता हूँ कि वे एक वृद्ध व्यक्ति हैं और हमें उनको तुम्हें बंगाली व संस्कृत सिखाने की परेशानी में नहीं डालना चाहिए। जहां तक मेरे पश्चिमी शिष्यों का प्रश्न है, तो उन्हें इन भाषाओं को सीखने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है। इसलिए मैं इसे ज़रूरी नहीं समझता। कृपया सदानन्द स्वामी को मेरे दण्डवत् प्रणाम अर्पण करना। वे मेरे पुराने मित्र व गुरुभाई हैं। और इसलिए जब भी वे आएं तो तुम्हें उनको यथोचित आदर सत्कार देना चाहिए। लेकिन उनकीं वृद्ध अवस्था में उन्हें किसी काम में लगाने का प्रयास मत करना।
जब मैं एल.ए. में था, तब मुझे तुम्हारे 100 डॉलर का योगदान प्राप्त हुआ था। मैंने वसुदेव के पत्र का अलग से उत्तर दे दिया है और से चित्रकारी के लिए प्रोत्साहित किया है। और तुम देखना कि वह अच्छे से कार्य करता रहे। कलाकृतियों का एक सेट तत्काल ही ऑस्ट्रेलिया भेजा जा सकता है।
मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि हिमावती सदैव भगवान की सेवा में लगी रहती है।
शिवानन्द का अपनी पत्नी के साथ म्युनिक जाकर वहां पर एक नए केन्द्र की शुरुआत करने की योजना बहुत अच्छी है। यदि तुम अधिक से अधिक शाखाएं खोलो, तो वह मेरे लिए बहुत उत्साहवर्धक है। शिवानन्द के पास अनुभव है। और अब उसके साथ उसकी नई वधू है, जो स्वयं बहुत अच्छी है। तो उन्हें इस आंदोलन के विस्तार हेतु म्युनिक जाने दो। यह एक बहुत अच्छा कार्क्रम है।
अधिक संभावना है कि सन्न्यासीगण युरोप होते हुए भारत जाएंगे। न्यु वृंदावन में तुम्हारी अगली बैठक में जब तुम मिलोगे तो इस सब पर चर्चा होगी।
आशा है कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
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