"कृष्ण, या सर्वोच्च भगवान, सभी के ह्रदय में वास करते हैं। इसलिए बिल्ली, कुत्ता एवं शूकर वे भी जीवित प्राणी हैं, जीवात्मा हैं- इसलिए कृष्ण उनके ह्रदय में भी वास करते हैं। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सूअर के साथ घृणित स्थिति में रह रहे हैं। उनके पास अपना वैकुंठ है। वह जहां भी जाते हैं वह वैकुंठ है। इसी प्रकार, जब कोई जप करता है, तो पवित्र नाम और कृष्ण के मध्य कोई अंतर नहीं है। तथा कृष्ण कहते हैं कि "मैं वहां रहता हूं जहां मेरे शुद्ध भक्त जप करते हैं।" इसलिए जब कृष्ण आते हैं, कृष्ण आपकी जिह्वा पर होते हैं, तो आप इस भौतिक संसार में कैसे रह सकते हैं? यह पहले से ही वैकुंठ है, बशर्ते आपका जप अपराध रहित हो।"
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