HI/710216d प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"सबसे पहले, ब्रह्म-ज्योतिर् आ रहा है। और कृष्ण भी कहते हैं, ब्राह्मणः अहम् प्रतिष्ठा। ब्रह्मन परम नहीं है। ब्रह्मेती परमात्मेति भगवान इति शब्द्यते (श्री.भा. १.२.११)। पहला अनुभूति ब्रह्मन है, अवैयक्तिक ब्रह्मन, फिर परमात्मा, और फिर भगवान। अतः भगवान परम हैं। मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय(भ.गी. ७.७)। अत: ब्रह्म-तत्त्व, अवैयक्तिक ब्रह्म-तत्त्व, परम नहीं है। परम कृष्ण हैं, देवत्व की सर्वोच्च व्यक्तित्व। यही वैदिक निर्णय है।" |
710216 - प्रवचन चै.च. मद्य ६.१५४ - गोरखपुर |