"भागवत कहता है, न ते विदुः स्वार्थ-गतिम् ही विष्णुं (श्री.भा. ७.५.३१)। ज्ञान, ज्ञान का लक्ष्य क्या है? समझने के लिए विष्णु तक जाना होगा। तद विष्णुं परमम् पदम् सदा पश्यन्ति सूरयः (ऋग वेदा)। जो वास्तव में बुद्धिमान हैं, वे बस विष्णु रूप का निरीक्षण कर रहे हैं। यह वैदिक मंत्र है। इसलिए जब तक आप उस अर्थ तक नहीं पहुंचते, तब तक आपके ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है। यह अज्ञान है। नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमाया समावर्तः (भ.गी. ७.२५)। तो जब तक आप कृष्ण को नहीं समझते हैं, इसका मतलब है कि आपका ज्ञान अभी भी आवृत है।"
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