HI/710805 - करणधार को लिखित पत्र, लंदन
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त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
7, बरी प्लेस
लंदन, डब्ल्यू.सी. 1
इंग्लैंड
5 अगस्त 1971
मेरे प्रिय करणधार,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 2 अगस्त, 1971 का पत्र मिला और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। मैं यह जानकर बहुत हर्षित हूँ कि तुम सैन फ्रांसिस्को से बड़े विग्रह ले आए हो। जो अनष्ठान समारोह तुमने बॉस्टन में देख रखे हैं, उनके अनुरूप तुम इन विग्रहों की स्थापना कर सकते हो। इसे स्वच्छता, प्रेम व स्नेह के साथ सुन्दरता से करो। उसकी आवश्यकता है। मुझे नहीं लगता कि मैं जन्माष्टमी के समय तक एल.ए. लौट पाऊंगा। तो मैं तुम्हें इस समारोह को आयोजित करने अधिकार देता हूँ।
जहां तक भवानन्द के साथ जगह बदलने की बात है, तो मुझे नहीं लगता कि फिलहाल तुम्हारी अनुपस्थिति में एल.ए. का संचालन हो सकेगा। शुरुआती प्रस्ताव यही था कि यदि मुखियाओं को बदलाव की आवश्यकता हो तो वे केन्द्रों की अदला-बदली कर सकते हैं। किन्तु तुम्हारी जगह का बदला जाना लाभकर नहीं होगा। तो तुम वहीं रहो और अच्छी तरह से विकास करो। मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम फ्रेस्नो, कैलिफोर्निया में एक नई शाखा खोल रहे हो और जल्द ही लाँग बीच में भी खोलोगे। तुम्हारी उपस्थिति की आवश्यकता वहां पश्चिम में है। तुम्हारी देखरेख ही सबसे महत्त्वपूर्ण पद है। देखरेख के अलावा मैं भी क्या कर रहा हूँ। तो वहां एल.ए. में बने रहो।
मेरे अनुसार जितनी आवश्यकता तुम्हारी एल.ए. में हैं, उतनी ही भवानन्द की एन.वाय में है। परन्तु उसे कुछ बदलाव की आवश्यकता है। तो मैं सोचता हूँ कि वह मायापुर जाकर भवन निर्माण का संचालन कर सकता है। फिर न्यु यॉर्क केन्द्र का संचालन रूपानुग ले सकता है। कल मैंने युनाइटेड किंगडम को भारत के उच्चायुक्त से बात की। तो अब हमें यहां से प्रचारक वीज़ा बहुत आसानी से मिला करेंगे। तो अब या तो वे प्रचारक वीज़ा अमरीका से ले सकते हैं। अथवा कठिनाई होने पर तुम मुझे उधर जाने वाले भक्तों के नाम भेज सकते हो और मैं यहां उनके नाम जमा कर दूंगा। फिर वे भारत जाते हुए, रास्ते में, लंदन से अपना वीज़ा उठा सकते हैं। तो हमारे सभी केन्द्रों में यह सूचना पंहुच जानी चाहिए।
फिलहाल के लिए सन्न्यास आश्रम ग्रहण करने की बात को भूल जाओ। जब तक तुम्हारे बालक का जन्म नहीं हो जाता, तबतक सन्न्यास लेना कोई प्रश्न नहीं उठता। तुम्हारे बालक के जन्म के उपरान्त हम इस बात पर आगे विचार करेंगे। तो अभी तुम्हें अपनी पत्नी की देखभाल करनी चाहिए। स्त्रियों का खयाल रखा जाना चाहिए, विशेषकर गर्भ की स्थिति में। विवाह अनुष्ठान के समय प्रण लिया जाता है कि पति जीवनभर पत्नी की देखरेख करेगा और पत्नी जीवनभर पति की सेवा करेगी। जब बालक बड़ा हो जाए, तब पति सन्न्यास ले सकता है। हालांकि भगवान चैतन्य ने 24 वर्ष की अवस्था में सन्न्यास लिया था। किन्तु वह विशेष है। मैं सोचता हूँ कि तुम अभी सन्न्यास से धिक कर रहे हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एडीबी
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