"जैसे एक मनुष्य, वह दिन-रात बहुत मेहनत कर रहा है। किस लिए? अपने परिवार, अपने बच्चों और पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए। इसलिए जब तक कुछ रस, कुछ रूचि न हो, वह दिन-रात इतनी मेहनत नहीं कर सकता। मेहनत से परिवार का भरण-पोषण करने में कुछ रूचि है। और कभी-कभी हम देखते हैं कि जिसका कोई परिवार नहीं है, जिसे कोई पारिवारिक स्नेह नहीं है, वह इतनी मेहनत नहीं करता है। उसे काम की परवाह नहीं है। यह व्यावहारिक है। इसलिए वैदिक सभ्यता में पारिवारिक जीवन की सिफारिश की जाती है जब तक कि कोई भ्रमित, निराश न हो जाए, क्योंकि उसे पारिवारिक जीवन की कोई रूचि नहीं है। तो हर चीज में कुछ रस है, रूचि है। उस रूचि के बिना, कोई भी जी नहीं सकता है। अब यहाँ यह सिफारिश की गई है, श्रीमद-भागवतम रसम आलयम। यहाँ एक रूचि है जिसका आनंद आप अपने जीवन के अंत तक या मुक्ति की सीमा तक ले सकते हैं।"
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