HI/710820 - तमाल कृष्ण को लिखित पत्र बी, लंदन
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
शिविर: इस्कॉन
7, बरी प्लेस
लंदन, डब्ल्यू.सी. 1
इंग्लैंड
20 अगस्त 1971
मेरे प्रिय तमाल कृष्ण,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा जन्माष्टमी के दिनांक का पत्र मिला और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। मरम्मत कार्य संघ को दान में प्राप्त पुरानी इमारतों के लिए है। इन भवनों की मरम्मत बिल्डिंग फंड में से की जा सकती है, लेकिन पहले से खरीदी गई या किराए पर ली गई इमारतों का खर्चा इससे नहीं चलाया जा सकता है। वह एक मन्दिर विशेष के अपने खर्च के तौर पर किया जाना है। चूंकि राजधानी वहां पर स्थापित है, इसलिए दिल्ली भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर है। अधिकांश जनसंख्या पढ़ी-लिखी है। तो एक सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दिल्ली सबसे महत्त्वपूर्ण नगर है। वहां पर कई सांस्कृतिक केन्द्र भी हैं, जैसे अनेक पुस्तकालय, विद्यालय, कॉलेज, विभिन्न प्रकार के व्यापारिक कार्यालय व विभिन्न छपाईखाने। तो यदि तुम उन्हें प्रभावित कर पाए, तो वह एक बहुत बड़ा प्रचार केन्द्र होगा। मैं सोचता हूँ कि, कलकत्ता व बम्बई की ही तरह, दिल्ली में भी तुम्हें एक पंडाल गोष्ठी उत्सव का आयोजन करना चाहिए। कनॉट प्लेस के पास एक बड़ा मैदान है।
हाँ, तुम सारा काग़ज़ बंगाल पेपर मिल से प्राप्त कर सकते हो। वह एक अच्छा अवसर है। तो हमारे हिन्दी प्रकाशन के लिए सारा काग़ज़ वहां से प्राप्त करो। सितम्बर के मध्य तक क्षीरोदकशायी वहां पंहुच जाएगा। तो हिन्दी कार्य के प्रकाशन एवं अनुवाद की पूरी देखरेख राहुल, रामानन्द व क्षीरोदकशायी करेंगे। यदि तुम बीटीजी का अनुमान भेजो, तो मैं तुम्हें एक चेक भेजुंगा। क्षीरोदकशायी ने पहले ही आगरा में एक छपाईखाने का प्रबन्ध कर लिया है। और कहा गया है कि बीटीजी की छपाई के लिए वह सबसे अच्छी जगह है। पहले से मौजूद सभी पुस्तकें व अन्य सभी कुछ प्रकाशित किया जा सकता है। चूंकि पर्याप्त लोग नहीं है, इसलिए एक साथ तीन पंडाल खोलना कठिन रहेगा। अन्यथा कोई परेशानी नहीं है। पर यदि तुम प्रबन्ध कर पाओ तो बहुत बड़ी बात होगी। लेकिन खासी परेशानी भी। मैं सोचता हँ कि तुम दिल्ली में एक गोष्ठी का आयोजन कर सकते हो। सभी कुछ दक्षतापूर्ण प्रबन्ध, व्यक्तियों व बल पर निर्भर करता है।
अपने पिछले पत्र में गिरिराज ने मुझे बताया था कि वह बीमार ह, किन्तु उसके बाद से मैंने उससे कुछ सुना नहीं। वह कैसा है। मैं जानने को उत्सुक हूँ। उसके स्वास्थ्य का अच्छे से ध्यान रखा जाना चाहिए। वह एक महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ता व एक अच्छी जीवात्मा है।
जहां तक काग़ज़ के स्तर की बात है, तो वह भारतीय बाज़ार पर निर्भर करेगा। पर जहां तक हमारे संघ का प्रश्न है, हम प्रथम श्रेणी के साहित्यिक उत्पाद का स्तर बना कर चल रहे हैं। पर यदि परेशानी है, तो फिर मैं क्या कह सकता हूँ। तुम जन साधारण के लिए एक सस्ता संस्करण निकाल सकते हो। वह ठीक है।
मैंने जुलाई माह का तुम्हारा आर्थिक ब्यौरा देखा है, परन्तु वही बात जारी है। संग्रह रु.21,000 का हुआ था, लेकिन रु.15,000 जमा करवाए गए हैं। अर्थात् रु.6,000 खा लिए गए या फिर कुछ और। तो काम कैसे चलेगा। यह सब शुरुआत से चल रहा है। कोई व्यावहारिक प्रस्ताव लाया जाना चाहिए। यदि संग्रह में से 25 प्रतिशत इस प्रकार व्यय होगा, तो मैं नहीं जानता कि संचालन कैसे किया जाए। स्थिति में बदलाव किस प्रकार से लाया जाए, कृपया इस बारे में तुम मुझे तुम्हारा व्यावहारिक हल बताओ।
आशा है कि यह तुम्हे अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त होगा।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
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