"श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, वह नियमित रूप से कार्यालय से आने के बाद प्रसाद पाकर तुरंत सो जाते थे, तथा बारह बजे उठकर वह पुस्तकें लिखते थे। उन्होंने लगभग १०० पुस्तकों की रचना की तथा भगवान चैतन्य के जन्म स्थल की खोज की, उस जन्म स्थल को कैसे विकसित किया जाए उसकी नीति का भी निर्माण किया। मायापुर को भी विकसित किया। उनके पास बहुत सारे कार्य थे परंतु फिर भी वे भगवान चैतन्य के तत्त्व के बारे में प्रचार करने के लिए जाते थे। वह विदेशों में पुस्तकें भेजते थे। १८९६ में उन्होंने मॉन्ट्रियल के मैकगिल विश्वविद्यालय में भगवान चैतन्य का जीवन और उपदेश नामक पुस्तक को भेजने का प्रयास किया। इसलिए वह व्यस्त थे, वे आचार्य हैं। हमें भी चीजों को समायोजित करना होगा। यह नहीं कि आप सोचें 'क्योंकि मैं गृहस्थ हूं, मैं एक गृहस्थ हूं, मैं उपदेशक नहीं बन सकता।"
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