"तो स्वयं को समझने का अवसर कहाँ है? पूरी रात या तो सोने में या मैथून में लगे रहते हैं, और सारा दिन पैसा कहाँ से लाएँ और कहाँ से चीज़ें खरीदें इसमें लगे रहते हैं। बस इतना ही। दिन-रात। लेकिन मुझे यह मानव शरीर मिला है, इतना महत्वपूर्ण। मुझे खुद को जानना है, लेकिन मुझे समय नहीं मिलता है। उन्हें समय नहीं मिलता है। अगर यह बैठक एक राजनीतिक नेता की बैठक होती, जो हर तरह की झूठी आश्वासन देता है, लाखों या अरबों लोग आते। लेकिन क्योंकि यह आत्म-तत्व, या आत्म-साक्षात्कार को समझने के लिए एक बैठक है, किसी को दिलचस्पी नहीं होगी। यह हमारी स्थिति है। तो हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रोत्साहित किया जा रहा है। कोई भी इच्छुक नहीं है . . . (अस्पष्ट) . . . सिवाए उसके जो बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति है ।"
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