HI/710917 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मोम्बासा में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"परं दृष्ट्वा निवर्तते (भ. गी. २.५९), भगवद-गीता में, "जब एक मनुष्य अच्छाई का आदी हो जाता है, तो वह बुरी आदतों को छोड़ देता है।" एक बच्चे की तरह, एक लड़का, वह कभी-कभी बहुत शरारती खेल खेलता है, लेकिन जब वह बड़ा हो जाता है या उसे अध्ययन करने का अभ्यास लग जाता है, तो वह कोई शरारत नहीं करता-वह पढ़ता और लिखता है, वह पाठशालय जाता है और गंभीर और सौम्य हो जाता है। इसे परं दृष्ट्वा निवर्तते कहा जाता है। जब तक यह स्वाभाविक न हो, आप जबरदस्ती कुछ नहीं सिखा सकते। तो कृष्ण-भक्ति सभी के लिए स्वाभाविक है-सभी के लिए।"
710917 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०२.०६ - मोम्बासा