HI/711111 बातचीत - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सर्व-धर्मान परित्यज्य
माम एकमशरणम व्रज
अहं त्वां सर्व-पापेभ्यो
मोक्षयिश्य्यामी
(भ. गी. १८.६६)

"बस मेरी शरण लो और मैं तुम्हें सभी पापमय जीवन की प्रतिक्रियाओं से बचाऊंगा।" क्योंकि यहां भौतिक दुनिया में हर कोई पापी है-और प्रतिक्रिया होती है। वह आश्वासन देते हैं कि "मैं तुम्हें पापमय जीवन की प्रतिक्रियाओं से सुरक्षा दूंगा। बस मेरी शरण में आओ।" लेकिन कोई नहीं कर रहा है।"

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