HI/720412 - निरंजन को लिखित पत्र, सिडनी
12 अप्रैल, 1972
शिविर: इस्कॉन टोक्यो
मेरे प्रिय निरंजन,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 18 मार्च, 1972 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने इसे पढ़ा है। मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम अपने गंतव्य स्थान तक पंहुच गए हो और बिना चूके, हरे कृष्ण का जप बहुत दृढ़ता के साथ कर रहे हो। यदि कोई व्यक्ति मात्र चार नियमों का पालन व नियमित रूप से हरे कृष्ण जप करता रहे, तो भक्तिमार्ग से अधःपतन होना का प्रश्न ही नहीं उठेगा।
जहां तक मायापुर में तुम्हारे द्वारा प्रश्न पूछने पर मेरे द्वारा तुम्हें डांटने की बात है, तो मैं बताना चाहुंगा कि मैं केवल प्रेमवश ही अपने किसी भी छात्र को डांटता हूँ। एक पिता का यह कर्तव्य होता है कि वह पुत्र का पालन इस प्रकार से करे कि वह एक बलशाली एवं उपयोगी नागरिक बने। और इसीलिए, कभी-कभी पुत्र द्वारा गलती किए जाने पर, पुत्र को सीख देने के लिए, पिता को उसे धमकाना पड़ता है। किन्तु यह कठोरता केवल उसके पुत्र के हित के लिए ही है। इसी प्रकार से, तुम सभी मेरी आध्यात्मिक संतानें हो और मेरा एकमात्र ध्येय यह है कि तुम सब कृष्ण की सेवा में बलिष्ठ बनो। तो कभी-कभार डांट हो सकती है, लेकिन तुम्हें सदैव स्मरण रहना चाहिए कि वह प्रेम के कारण की जा रही है और केवल तुम्हारे भले के ही लिए है। तुम एक बुद्धिमान युवक हो और मैं चाहता हूँ कि तुम्हें भली-भांति प्रशिक्षित करूं, जिससे तुम कृष्णभावनामृत के इस महान दर्शन का प्रचार पूरे विश्वास के साथ कर पाने में सक्षम बनो। और इस प्रकार से तुम इन आध्यात्मिक भूख से क्लान्त जीवात्माओं का उद्धार करने में सहायक बनो। इसलिए, तुम्हें इस डांट को कृष्णभावनामृत में अग्रसर होने के एक अवसर के रूप में ही देखना चाहिए, अन्य किसी प्रकार से नहीं।
मैं 5 मई तक जापान में रहुंगा, फिर दो सप्ताह हवाई में, फिर दो सप्ताह लॉस एन्जेलेस में और फिर कुछ समय मैं लॉस एंजेलेस में अनुवाद कार्य करने के लिए रहुंगा। तुम किसी भी समय निःसंकोच मुझे पत्र लिख सकते हो और तुम्हारे किसी भी प्रश्न के संदर्भ में तुम्हारी सहायता करके मुझे प्रसन्नता होगी।
कृपया अपने पिता को मेरे अभिवादन देना। आशा है कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य के साथ प्रसन्नचित्त में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एनकेडी
श्रीमन निरंजन दास ब्रह्मचारी
4_____ छात्रावास, बी.एच.जे.
वाराणसी -5, भारत में वी.पी.
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