HI/720501 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद टोक्यो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"जीबीसी का एक सदस्य होना अर्थात वे हर मंदिर में जांचेंगे की ये किताबें अच्छी तरह से पढ़ी, समझी, व्यवहारिक जीवन में अपनाई और इनपर चर्चा की जा रही है। यह अनिवार्य है। बस पत्रिका देखना नही की "कितनी किताबे बिकी हैं, और कितनी बची हैं?" यह अप्रधान है। आप भले पत्रिकाएं रखे . . . अगर कोई कृष्ण की सेवा में लगा हुआ है, तो पत्रिका की आवश्यकता नहीं। अर्थात . . . सब अपना सर्वश्रेष्ठ रूप से कार्य कर रहे हैं। बस। हमें बस देखना होगा की सब कार्य अच्छे से हो रहे हैं। ऐसे ही जिबिसी के सदस्यों को कुछ विभाग बना देने चाहिए ताकि वे जांच सके की सब कार्य अच्छे से हो रहा है की नही, की सब १६ माला कर रहे हैं, मंदिर का संचालन उनके दिनचर्या के अनुकूल हो रहा है, किताबो पर गहराई में चर्चा की जा रही है,पढ़ी जा रही है,और व्याह्वारिक तौर से समझी जा रही है। यह सब अनिवार्य है।"

720501 - प्रवचन श्री.भा. ०२.०९.०२-३ - टोक्यो

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