HI/720730 - जयपताका को लिखित पत्र, एम्स्टर्डैम
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
केंद्र: इस्कॉन एम्स्टर्डम
(जवाब इस्कॉन लंदन)
30 जुलाई, 1972
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 22 जुलाई, 1972 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि मायापुर में सभी कुछ सुचारु रूप से चल रहा है। वहां क्या चल रहा है, इस बारे में मुझे अक्सर सुनने को तो नहीं मिलता पर तुम्हारे ब्यौरे से जान पड़ता है कि सबकुछ अच्छे से है। वहां अभी मानसून का मौसम है। चूंकि मुझे तमाल कृष्ण से इस बारे में कुछ भी सुनने को नहीं मिला है, तो मुझे नहीं पता कि वह मायापुर के कार्य में भाग ले रहा है या नहीं।
यदि तुम उसे एक शीर्ष कोटी का मन्दिर बना दो तो तुम्हें प्रचार करने के लिए यात्रियों की कमी नहीं होगी। यहां तक कि तुम्हें प्रचार हेतू वहां से बाहर जाने की भी आवश्यकता नहीं होगी। और यदि तुमने अच्छा प्रसाद वितरण किया, तो पूरा भारत चला आएगा। तो हमारे सिद्धांतों पर अटल रहो और इन अमरीकी वैष्णवों को देखने के लिए, सभी लोग आएंगे। मैं चाहता हूँ कि हम चैतन्य मठ से आगे निकल जाएं। वे पिछले 50 वर्षों से प्रयासरत हैं और हम दो वर्षों में उनसे आगे निकल जाएंगे। हम कारीगरों की दो बारियों में काम करवा रहे हैं। यह कार्य करने की अमरीकी शैली है। यदि तुम कार्य करने की इस अमरीकी शैली को जारी रखो, तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। पर यदि तुम ऐसा नहीं करते तो मैं उसी स्तर पर रह जाऊंगा। और यह अमरीकियों के लिए बहुत अपयश का करण होगा। पर यदि मैं अपने गुरुभाईयों को हरा देता हूँ, तो मैं अमरीकियों का गुरु कहलाने के लायक हूँ। यहां तक कि आध्यात्मिक जीवन में भी प्रतिस्पर्धा होती है।
पैसों के बारे में मैं कहना चाहुंगा कि, निर्माण कार्य के लिए हम यहां से भेज तो रहे हैं, पर कोई आकस्मिक आवश्यकता आने पर गिरिराज भी सहायता कर सकता है। पर फिलहाल, जब कभी भी तुमने अनुरोध किया है, हम भिजवा रहे हैं। लेकिन तुम्हारी अनुरोध शैली वैसी नहीं है जैसी हमने तय की थी। इसी कारण से विलम्ब हुए हैं। मैंने तुमसे कहा था कम-से-कम दो व्यक्तियों को हस्ताक्षर करने होंगे। लेकिन भवानन्द के पिछले अनुरोध में उसने स्वयं भी हस्ताक्षर नहीं किए। पत्र पर एक व्यक्ति ने भी हस्ताक्षर नहीं किए थे। इन मामलों के बारे में हमेशा बहुत सतर्क रहने का प्रयास करो। हम एक बहुत जिम्मेदाराना काम कर रहे हैं। जहां तक रख-रखाव की बात है, कलकत्ता खयाल रख रहा है। तो कोई कठिनाई की बात नहीं है। हाँ, तुम ठीक कह रहे हो कि सारी सदस्यता व पुस्तक वितरण से प्राप्त राशि को बम्बई भिजवाना चाहिए और रखरखाव के लिए प्राप्त हो रही दानराशि को वहीं रखकर खर्च करना चाहिए। और यदि वह राशि भी बहुत बड़ी हो, तो उसे भी बम्बई भिजवा देना चाहिए।
बहुत शीघ्र ही तुम्हें बहुत-बहुत सारी पुस्तकें प्राप्त होंगीं। मैं गिरिराज को निर्देश दूंगा कि मायापुर परियोजना के लिए धन इकट्ठा करने हेतू, तुम्हें वहां पर बेचने के लिए जितनी भी पुस्तकें चाहिएं हों, वह तुम्हें भिजवा दे। मैं यहां से और धन नहीं भेजना चाहता। लेकिन हम तुम्हें अनेकों पुस्तकें मुफ्त भेज देंगे और फिर उनसे इकट्ठे हुए धन को निर्माण में उपयोग किया जा सकता है।
मैं यह जानकर हर्षित हूँ कि तुम विस्तार हेतू और अधिक भूमि क्रय कर रहे हो। हमारी भूमि की बांईं ओर जो कृषि भूमि हमने एक घोष से खरीदी थी, उसका क्या हुआ। सब्ज़ियों की ऐसी सुन्दर विविधताओं से तुम बहुत शीघ्र विटाणुओं से परिपूर्ण हो जाओगे। एक गाय रख लो और फिर किसी प्रकार की कमी का प्रश्न नहीं उठेगा और अपने भरण-पोषण के लिए किसी और पर निर्भर होने का प्रश्न नहीं उठेगा। अब तुम्हारे पास पहली मंज़िल पर एक बड़ा हॉल है। तो वहां पर चावल का भंडार रखो, ताकि वह बाढ़ से बचा रहे।
मैं सोचता हूँ कि मायापुर का पूरा वातावरण अभी बहुत ही सुन्दर होगा और सितम्बर मास में कभी वहां पर लौटकर मुझे बहुत नंद होगा। तो कृपया उस समय तक कार्य पूरा कर लो। मलाती ने वहां पर मेरे कमरों को सजाने की इच्छा व्यक्त की है। तो जैसे ही वे तैयार हो जाएं, वह वहां पर जाकर सबकुछ अच्छी तरह से तैयार कर सकती है।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्रप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकाँक्षी
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एसडीए
जयपताका स्वामी
c / o इस्कॉन मायापुर
cc: गिरिराज / बॉम्बे (हस्तलिखित)
अगस्त
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