"आधुनिक सभ्यता यह है कि हम कैसे बहुत अच्छी तरह से खा सकते हैं, हम कैसे अच्छी तरह से सो सकते हैं, हम कैसे अच्छे तरीके से संभोग कर सकते हैं, हम कैसे अच्छी तरह से बचाव कर सकते हैं। केवल इन चार सिद्धांतों को सिखाया जा रहा है। उन्हें कोई विचार नहीं है कि आत्मा क्या है, भगवान क्या है, आत्मा के साथ क्या संबंध है। इसलिए यह है, इस प्रकार की सभ्यता अधिक हो रही है। तो बस कल्पना करें कि चार सौ हजारों वर्षों के बाद कितना अधिक हो गया होगा। कलियुग केवल पांच हजार साल से शुरू हुआ है। इन पाँच हज़ार साल में, हम कितने भ्रष्ट हो गए हैं, माया से ब्रह्मित जैसा की सभ्यता की उन्नति। यह माया है। तो जैसे अधिक दिन गुजरता है, हम और अधिक ब्रह्मित होंगे। तो भगवान को समझने की कोई क्षमता नहीं रहेगी। उस समय इस जनसँख्या का गला काटकर उसका नाश करने के लिए भगवान अवतरित होंगे। यह कल्कि-अवतार है।"
|