HI/730717 - चिंतामणि को लिखित पत्र, भक्तिवेदान्त मैनर
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
भक्तिवेदान्त मैनर,
लेटचमोर हैथ, हर्ट्स, इंग्लैंड
17 जुलाई, 1973
प्रिय चिन्तामणि दासी,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे बिना दिनांक का तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है।
तुमने लिखा है कि तुम नहीं जानतीं कि कृष्ण तुमसे क्या चाहते हैं और कि पालिका दासी ने तुम्हें विग्रहों के संदर्भ में सहायता के लिए हैदराबाद आने का न्यौता दिया है। तो मैं सोचता हूँ कि यह एक अच्छा विचार है कि तुम भारत चली जाओ और तुम यथाशीघ्र इसकी व्यवस्था कर सकती हो।
तुमने पूछा है कि तुम ईर्ष्या से पूर्णतः मुक्त किस प्रकार हो सकती हो। भगवान चैतन्य ने कहा है कि, मात्र हरे कृष्ण के जप द्वारा, ह्रदय अपने अन्तर्निहित सारी मलिनता से मुक्त हो सकता है। ऐसा नहीं है कि हमें अपने भीतर की किसी कमी व मलिनता से मुक्त होने के लिए कोई अलग उद्योग करना होगा। इस युग में, कृष्ण के साथ संग करने के लिए, हरे कृष्ण का जप ही एकमात्र माध्यम के रूप में सुझाया गया है। जब हम निरपराध जप द्वारा, उनके दिव्य नाम के माध्यम से कृष्ण का संग करते हैं, तो ह्रदय में स्थित सारी अमंगलकारी वस्तुएं दूर हो जाती हैं। तो चाहे तुम कहीं भी हो, तुम्हें सर्वदा हरे कृष्ण का जप करते रहना चाहिए और इससे तुम्हें पूर्णता प्राप्त हो जाएगी।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
चिंतामणि देवी दासी
इस्कॉन नव वृन्दावन
एसीबीएस/एसडीजी
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