HI/730719 - करणधार को लिखित पत्र, भक्तिवेदान्त मैनर
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
केंद्र: भक्तिवेदान्त मैनर,
लेटचमोर हैथ, हर्ट्स, इंग्लैंड
19 जुलाई, 1973
मेरे प्रिय करणधार,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 12 जुलाई 1973 का पत्र प्राप्त हुआ है और मैंने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है।
बैंक खाते में जमा करवाने के लिए, हाँ, तुम भविष्य में सभी राशियां खाता संख्या 366 8 80613 में करवा सकते हो। इसी बीच मैं बैंक ऑफ अमेरीका को पत्र भेज रहा हूँ, जिसमें मैं उन्हें मेरे चैकिंग खाते से निवेश खाते में 700 डॉलर स्थानान्तरित करने का अधिकार दे रहा हूँ।
यहां भक्तिवेदान्त मैनर की स्थिति सर्वोत्तम है। यहां शान्ति व नीरवता है और गाँव में सफाई व स्वच्छता है। मैं प्रतिदिन प्रातः भक्तों के साथ में भ्रमण कर रहा हूँ और प्रातः कक्षा अपने प्रायिक समय 7-8 बजे के बीच दे रहा हूँ। संध्या समय में अत्यन्त सम्माननीय सज्जनगण आ रहे हैं। पिछली रात जॉर्ज हैरिसन आया था। वह हमारे आन्दोलन का एक महान समर्थक बन गया है। हमारी गतिविधियों के विस्तार हेतू वह और अधिक व्यय कर सकता है। कल उसने मुझसे मुस्कुराते हुए कहा- “अनेकों मन्दिरों के विस्तार के लिए मैं आपकी सहायता करने का प्रयास करुंगा।” जन्माष्टमी के दिन विग्रह स्थापना की यहां पर तैयारियां जारी हैं। अनेकों भारतीय भी आ रहे हैं। हम यहां लंदन में, भारतीय बच्चों को भर्ती करने के लिए, एक गुरुकुल प्रारंभ करने का प्रस्ताव ला रहे हैं। भारतीय सज्जन असमंजस में हैं, चूंकि ऐसा कोई संस्थान नहीं है जिसमें बच्चों को भर्ती कर भारतीय संस्कृति बनाई रखी जा सके। तो संस्कृत, अंग्रेजीं व हमारी पुस्तकें पढ़ाई जाने के विचार को वे बहुत सराह रहे हैं। यदि हम यहां पर एक और गुरुकुल प्रारंभ कर दें, तो मुझे नहीं लगता कि उसमें कोई नुकसान होगा।
मैं अवश्य ही सितम्बर में लॉस ऐन्जेलेस लौटूंगा। यह सुनकर अच्छा लगा कि उस समय तक नए मन्दिर का कार्य बहुत प्रगति कर चुका होगा।
जहां तक स्वरूप दामोदर के कॉलेजों में जाने की बात है, तो राय रामानन्द भी आने को तैयार हो गया है। मैं हाल ही में उससे भारत में मिला था और वह उत्साहित है। अब हम इस भ्रांत धारणा को चुनौती देंगे कि जीवन की उत्पत्ति जड़ पदार्थ से होती है। निस्संदेह ही, जड़ पदार्थ जीवन से उत्पन्न होता है। और हम इस बात के अनेकों व्यावहारिक प्रमाण दे सकते हैं। तो वैज्ञानिक जगत में किस प्रकार से इस तथ्य को आगे लाना है, इस पर स्वरूप दामोदर व राय रामानन्द को अपनी रासायनिक भाषा में विचार करने देते हैं। यदि, कृष्णकृपावश, वैज्ञानिक लोगों ने इस बात को आंशिक रूप से भी स्वीकार कर लिया तो वह भी एक महान सफलता होगी। मेरी बात यह है कि यदि वे आंशिक रूप से भी स्वीकार कर लें कि उन्हें मूल जीवन का अन्वेषण करना है। शास्त्रों से हमें ज्ञात होता है कि ब्रह्माण्ड में मूल जीवन ब्रह्मा हैं और ब्रह्मा के भी स्रोत हैं ग्र्भोदकशायी विष्णु। गर्भोदकशायी विष्णु के स्रोत हैं कार्णोदकशायी विष्णु और इस प्रकार से हम अन्ततः सर्वकारणकारण कृष्ण तक पंहुचते हैं। हमें अवैध वैज्ञानिक की भ्रांत धारणा से जूझना होगा।
कैलिफोर्निया में कॉलेजों में जाने की तुम्हारी योजना व भाषणों के तुम्हारे शीर्षक मुझे अत्यन्त पसंद हैं। तुम रामानन्द को यथाशीघ्र पंहुचने के लिए लिख सकते हो। उसने मुझसे कहा था कि वह लंदन आकर मुझसे मिल सकता है। बहरहाल, उसका वहां पर आना तय है, उससे पत्राचार करो और एक सशक्त मण्डली बनाओ।
जीवन का स्रोत मिट्टी बताने वाले वैज्ञानिक के ऊपर तुम्हारी विजय, बहुत अच्छी बात है। हमें उनकी ऐसी बकवाद को सहन नहीं करना चाहिए। हमें ऐसी भ्रांत धारणाओं के प्रतिपादकों के विरुद्ध बोलना चाहिए और कहना चाहिए कि- कृपया ऐसी बकवास मत कीजिए। जनता को पथभ्रष्ट मत कीजिए। आप बड़े-बड़े वेतन ले रहे हैं और जनता का खराब नेतृत्व कर रहे हैं। धोखाधड़ी करने बजाए आपके लिए श्रेयस्कर होगा कि एक सफाई कर्मचारी बनकर ईमानदारी से अपनी जीविका चलाएं।
जय हरि द्वारा जुटाए गए अनुबंध के संदर्भ मेः हमें बेहतर शर्तें चाहिएं, तो कृपया बेहतर शर्तें भिजवाओ। मैं शर्तों से अवगत नहीं हूँ। तो हमें उनकी तुलना करनी होगी। हम बेहतर शर्तें स्वीकार करेंगे। यदि मैकमिलन लेते हैं, तो सबसे बढ़िया रहेगा। तो मैं श्यामसुन्दर से मना करता हूँ और तुम्हारे द्वारा जवाबी शर्तें भेजने की प्रतीक्षा करता हूँ।
जहां तक मि.कैलमन और रिकॉर्ड के लिए उनके नए प्रस्ताव की बात है, जबतक वे सर्वाधिकार हमें न सौंप दें, उसमें मत घुसो। उसके साथ जोखिम मत लो। वह हमारे विज्ञापन कार्य का फ़ायदा उठा सकते हैं और मुझे कुछ भी प्राप्त कर पाने से वंचित रख सकते हैं। मूलतः वे मुझे 10 प्रतिशत रॉयल्टी देने को राज़ी हुए थे, लेकिन उन्होंने मुझे कभी भी कुछ नहीं दिया। उनके साथ ध्यानपूर्वक व्यवहार करना। निचले तल के मेरे कमरे को तीन भागों में बांटकर उपयोग में लाने की तुम्हारी योजना मुझे स्वीकार है।
हमारे इस्कॉन केन्द्रों के संस्थापन के बारे में मैं बताना चाहता हूँ कि हम चाहते हैं कि हमारे सभी केन्द्र लाभ-रहित धार्मिक संस्थाओं के रूप में चलाए जाएं। यही मुख्य बात है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, आध्यात्मिक जीवन में अत्यधिक नियंत्रण अच्छा नहीं है। केन्द्रों को आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ व स्वतंत्र रहना चाहिए। जैसा कि अभी मौजूद है, वैसा थोड़ा नियंत्रण तो आवश्यक है। अत्यधिक नियंत्रण का मतलब हा अत्यधिक काग़ज़ी कार्यवाई। धीरे-धीरे वह भौतिक संस्था जैसा हो जाएगा। हमारे सभी प्रबंधक आध्यातमिक रूप से उन्नत, सरल व गुरु एवं कृष्ण के आदेशों का पालन करने में निष्कपट होने चाहिएं। यह एक अच्छा मापदंड होगा। आध्यत्मिक मामलों में जनतंत्र बिलकुल भी अच्छा नहीं है। बल्कि उससे सत्ता की राजनीति पनपती है। हमें सत्ता की राजनीति के संदर्भ में सतर्क रहना चाहिए। हमारा एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए कि प्रत्येक भक्त कृष्ण के प्रति शत-प्रतिशत समर्पित रहे। ऐसे में सबकुछ सुचारु रूप से चलेगा। जैसे वेदों का कथन हैः
यस्य देवे परा भक्तिर
यथा देवे तथा गुरौ
तस्यैते कथिताह्यार्था
प्रकाशन्ते महात्मना
(श्वेताश्वतर उपनिषद 6.23)
मैं इस्कॉन के संस्थापन में दिमाग खपाने से घबरा रहा हूँ। तो तुम व बलि मर्दन आवश्यक कदम उठाओ। इससे मुझे राहत मिलेगी।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एसडीजी
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