HI/730823 - तमाल कृष्ण को लिखित पत्र, भक्तिवेदान्त मैनर
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
केंद्र: भक्तिवेदान्त मैनर,
लेटचमोर हैथ, हर्ट्स, इंग्लैंड
वॉटफोर्ड, हर्ट्स के पास,
यू.के.
23 अगस्त, 1973
मेरे प्रिय तमाल कृष्ण,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 16 अगस्त 1973 का पत्र प्राप्त हुआ है। तो हैदराबाद के मामले में बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए और मि.पित्ती की सलाह ली जानी चाहिए। जब आखिरी अग्रमेंट बन जाए, तो मुझे एक प्रति भेजना और यदि मैं अनुमति दूँ तो मैं तुम्हें पावर ऑफ अटोर्नी दूंगा।
यहां पर 143,727.78 के फिक्स्ड डिपॉज़िट सर्टिफिकेट की एक नकल स्वीकार करो, जो 10 लाख रुपए के बराबर है और जो अब 20 अगस्त 1973 को इस्कॉन के नाम पर फर्स्ट नेशनल सिटी बैंक में जमा है। तो तुम इस सर्टिफिकेट की नकल का इस्तेमाल कर सकते हो, कि हमारे पास धन है। मैं तुम्हें 161,000.00 का बैंक में जमा सर्टिफिकेट भी भेजूंगा, जो 12 लाख रुपए के बराबर है। तो मुझे लगता है कि मि.वखील को हमारी आर्थिक स्थिति के बारे में विश्वास हो जाएगा और हमारे पास अकेले अमरीका में ही 50 केन्द्र हैं। तो आवश्यकता पड़ने पर हम तत्काल 50 लाख रुपए इकट्ठा कर सकते हैं। लेकिन हम बेवजह रुपए फंसाना नहीं चाहता, खासकर भारत में। तो किसी भी क्षण श्रीमती नैयर को 12 लाख रुपए, बिना किसी परेशानी के अदा किए जा सकते हैं।
यहां से 15 सितम्बर तक युरोप में मेरा कार्क्रम है। स्टॉकहोल्म में मेरा कार्क्रम 5 से 9 सितम्बर तक है। तो आशा है कि मैं 15 सितम्बर को लंदन से सीधा जापान जाऊंगा। इसी बीच यदि नैयर मामला पक्का हो जाता है तो मैं रुपए लेकर भारत होते हुए जापान जाऊंगा। यहां हमारी आर्थिक स्थिति की दो नकल दी जा रही हैं। ज़रूरी कदम उठाओ।
आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छी स्थिति में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
परम पूज्य तमाल कृष्ण गोस्वामी
हरे कृष्ण भूमि
गांधी ग्राम रोड
जुहू, बॉम्बे 54,
इंडिया
N.B. एन बी मुझे मायापुर में एक भारतीय भक्त, प्रभारूप दास, से शिकायत मिली है कि हमारे अमरीकी भक्तों द्वारा उसके साथ दुर्व्यवहार होता है। कृपया इस बारे में जांच करो और आव्श्यक कदम उठाओ। चाहे भारतीय हो या विदेशी, जो कोई भी हमसे जुड़ता है वह किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं है। हमारा एकमात्र बंधन है भगवद्प्रेम। हमारी सुस्पष्ट नीति यह होनी चाहिए कि किसी के भी साथ में बुरा बर्ताव न किया जाए कि वह छोड़ कर चला जाए। बहुत सारा रक्त बहा कर हम एक व्यक्ति को जोड़ते हैं। हर कोई सुधार के लिए आता है। तुम सबसे त्रुटिहीन होने की अपेक्षा नहीं रख सकते। बल्कि यह हमारा कर्त्तव्य है कि, जहां तक संभव हो, सभी को त्रुटिहीन बना दें। तो इस मामले में हमें बहुत सावधान व सतर्क रहने की आवश्यकता है।
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