HI/731009 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मैं आपको, आपके हाथों और पैरों और सिर को देख रहा हूं, लेकिन मैं वास्तव में आपको नहीं देख रहा हूं। आप मुझे देख रहे हैं, आप मेरे हाथों और पैरों को देख रहे हैं, लेकिन आप मुझे नहीं देख रहे हैं। यहां तक कि आत्मा के कण, भगवान का हिस्सा, अंतरंग अंश, हम नहीं देख सकते। तो हम भगवान को कैसे देख सकते हैं? यहां तक कि एक छोटा सा कण भी, ममैवांशो जीवभूत: (भ.गी. १५.७)। सभी जीव कृष्ण का हिस्सा, अंतरंग अंश हैं। ठीक उसी तरह जैसे अगर हम समुद्र के पानी की एक बूंद को भी नहीं पहचान सकते, तो हम समुद्र को कैसे पहचान सकते हैं? इसी तरह, हम जीव हैं, हम बस आत्मा, कृष्ण के छोटे कण हैं। ममैवांशो जीवभूत:। तो हम नहीं देख सकते हैं।"
731009 - प्रवचन भ.गी. १३.१५ - बॉम्बे