"य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणै: सह, सर्वथा वर्तमानोऽपि। यदि आपको पर्याप्त ज्ञान मिल गया है... ज्ञान है भगवद् गीता। बस आपको अध्ययन करना है। आपको सही व्यक्ति से भगवद् गीता का पाठ लेना है। तद्विज्ञानार्थं स गुरूमेवाभिगच्छेत श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् (मु उ १.२.१२)। आपको एक गुरु से सीखना चाहिए जो वास्तव में इस वैदिक साहित्य के ज्ञान में है, श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्। और ऐसे ज्ञान का लक्षण क्या है? ब्रह्म-निष्ठम्, दृढ़ता से ब्रह्म में स्थित है। ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते (श्री. भा. १.२.११)।ब्रह्मण को जानने का अर्थ है न केवल अवैयक्तिक ब्रह्म-ज्योति को, बल्कि परमात्मा और भगवन् को भी जानना। ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते। यह ज्ञान है।"
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