"मुद्दा, वे नहीं जानते हैं कि उनका व्यक्तिगत हित कृष्ण हैं। वे नहीं जानते हैं। इसलिए वे मुद्दा हैं। और कृष्ण कहते हैं। ऐसा नहीं है कि हमने इस शब्द का निर्माण किया है। कृष्ण कहते हैं, न मॉम दुष्कितिनो मुद्दा प्रपद्यन्ते नराधमा (भ. गी. ७.१५) कृष्ण हर किसी से पूछ रहे हैं, "कृपया मेरे आगे समर्पण करें। यह सब बकवास कार्य छोड़ दो।" यही उसका हित है, जीव का हित। कृष्ण को समर्पण करो या न करो, कृष्ण को क्या लाभ या हानि है? उनके कई सेवक हैं। वे अपने सेवकों का सर्जन कर सकते हैं। उन्हें आपकी सेवा कि आवश्यकता नहीं है। लेकिन अगर आप कृष्ण को आत्मसमर्पण करते हैं और उनकी सेवा करते हैं, तो यह आपका हित है। यही आपकी आसक्ति है। वे यह नहीं जानते हैं।"
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