HI/740207 - चैत्य गुरु को लिखित पत्र, वृंदावन
त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
केंद्र रमण रेती
वृंदावन मथुरा,
उत्तर प्रदेश भारत
7 फरवरी, 1974
मेरे प्रिय चैत्य गुरु,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे बहुत आघात पंहुचा जब तमाल कृष्ण महाराज के माध्यम से पता चला कि तुमने हमारी संगति छोड़ दी है और बाहर रह रहे हो। बहरहाल, मैं तुम्हारे विषय में सोच रहा था और 26 जनवरी, 1974 का तुम्हारा पत्र प्राप्त कर मुझे बहुत आराम मिला है। यदि कोई तुमसे कहता है कि तुम भारतीय हो, वह अमरीकी है, भारतीय किसी काम के नहीं, अमरीकी बढ़िया हैं, तो तुम दुःखित क्यों होते हो। शारीरिक संबंधों से प्रभावित क्यों हुआ जाए? एक वरिष्ठ एवं प्रौढ़ शिष्य के नाते तुम्हें ज्ञात होना चाहिए -श्री चैतन्य महाप्रभु ने सुझाया है कि हमें तृण के सदृश दीन और वृक्ष की भांति सहिष्णु बनना है और तब हम हमारी सेवा और हरे कृष्ण जप कर पाएंगे।
यदि भारतीय बुरे होते हैं, तब तो मैं भी बुरा हूँ, क्योंकि मैं भी भारतीय हूँ। पर उन्होंने एक भारतीय को अपना गुरु मान लिया है। तो भारतीय, अपने व्यवहार के अनुसार, भले और बुरे दोनों प्रकार के होते हैं। यदि उन्होंने भारतीय होने के कारण तुम पर बुराई का आरोप लगाया है, पर उन्होंने एक बुरे भारतीय को गुरु भी मान लिया है। हमारे शारीरिक संबंधों के इन बाह्य अंगों से विचलित मत होवो। कृष्ण भावनामृत में दृढ़ रहो ताकि तुम्हें श्री चैतन्य महाप्रभु एवं कृष्ण से कृपा मिले और अपना जीवन सफल बनाओ। मैं 13 तारीख को बम्बई आ रहा हूँ, कृपया वापस आ जाओ, और यदि तुम्हें परेशानी होती है - फिर चाहे वो भारतीयों से हो या अमरीकियों से - तो तुम मेरे साथ रह सकते हो, चूँकि मैं भारतीय हूँ।
मैं आशा करता हूँ कि तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा। जब मैं बम्बई आऊँ तो तुम्हें वापस आना ही होगा। हम न तो भारतीय हैं और न ही अमरीकी, हमारी वास्तविक पहचान यह है कि हम कृष्ण के दास हैं। सदैव इस सिद्धांत को याद रखो और इन बाहरी मामलों से तुम्हें कोई कष्ट नहीं पंहुचेगा। आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त होगा। मिलने पर और बात करेंगे।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी
(हस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एसडीजी
चैत्य गुरु दास
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82 मैरीन ड्राइव, बॉम्बे
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