HI/740222 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इंद्रिय तृप्ति आपको आनंद नही देगी। यह हमारा व्यवहारिक अनुभव है। आप किसी को भी बुला लीजिए जो इंद्रिय तृप्ति करते हैं, और उनसे, प्रश्न कीजिए "आप आनंदित हैं?" वे कभी नही कहेंगे। हमने व्यवहारिक तौर पर देखा है। यह यूरोपियन और अमरीकन, इनके पास पर्याप्त इंद्रिय तृप्ति के साधन हैं। इंद्रिय तृप्ति अर्थात धन और स्त्रियां। तो यह इनके पास पर्याप्त है। तो यह सब मेरे पास क्यों आए हैं, इनको ठुकरा कर? क्योंकि इंद्रिय तृप्ति आपको कभी संतुष्टि नहीं देगा। वह मिथ्या संतुष्टि है। वास्तविक संतुष्टि वह है जब आप कृष्ण को संतुष्ट करे। वह संतुष्टि है।
कृष्णेंद्रिय-तृप्ति-वांछा-धरे'प्रेम'नाम
आत्मेंद्रिया-तृप्ति-वांछा तारे नाम काम
(चै.च. आदि ४.१६५)

जब आप संतु . . . स्वयं के इन्द्रियों को संतुष्ट करना चाहते हैं, फिर आप काम से बंधे हैं। किंतु वही प्रयास यदि आप कृष्ण की इंद्रिय तृप्ति के लिए करें तो वह प्रेम या भक्ति है।"

740222 - प्रवचन भ.गी ०७.०७ - बॉम्बे