"यह बेशक हमारा कर्तव्य है कि, कृष्ण के सेवक के रूप में, सभी को कृष्ण भावनामृत की संकीर्तन आंदोलन के इस प्रक्रिया से जागृत करना, लेकिन लोगों को इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए, कि कृष्णा भावनामृत को लिए बिना, व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है-वह अपने ही गले को काट रहा है, या जहर पी रहा है। यदि आप जहर पीना पसंद करते हैं, तो नहीं..., कोई भी आपको रोक नहीं सकता है, यह एक तथ्य है। यदि आप अपना गला अपने आप से काटना चाहते हैं, तो कोई भी आपको रोक नहीं सकता है। लेकिन यह बहुत अच्छा कार्य नहीं है। हमें कृष्ण को जानने-समझने के लिए जीवन का यह मानवीय रूप मिला है। यह..., हमारा एकमात्र कार्य है। यह चैतन्य महाप्रभु का उपदेश है। और कृष्ण भगवद गीता में व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दे रहे हैं, और हमें इनका लाभ क्यों नहीं उठाना चाहिए और अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए?”
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