HI/740423 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो कृष्ण के साथ खेलने के लिए, कृष्ण के सहयोगी बनने के लिए, कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिए, यह कोई सामान्य बात नहीं है। हम ऐसा करना चाहते हैं। हम ऐसा यहां करना चाहते हैं। कई खेल संघ हैं, नृत्य संघ हैं, क्योंकि हम वो करना चाहते हैं। लेकिन हम वो इस भौतिक दुनिया में करना चाहते हैं। यह हमारा दोष है। यही चीज़, आप कृष्ण के साथ कर सकते हैं। बस कृष्ण भावनामृत हो जाइये और आपको अवसर मिलेगा। आप यहां खेल और नृत्य के लिए क्यों पीड़ित हो रहे हैं? उसे कहते हैं धर्मस्य ही अपवर्गस्य (श्री.भा. ०१.०२.०९)। इसे रोकें, मेरा कहने का मतलब है, भौतिक जीवन की हमेशा दर्दनाक स्थिति। त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति (भ.गी. ०४.०९)। क्योंकि हमें यह भौतिक शरीर प्राप्त है। इस भौतिक शरीर का अर्थ है सभी क्लेशों का भण्डार। कृत्रिम विधि से, तथाकथित वैज्ञानिक उन्नति, हम सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह वास्तविक संतोष नहीं है।"
740423 - प्रवचन श्री.भा. ०१.०२.०९ - हैदराबाद