HI/740501 - महात्मा को लिखित पत्र, बॉम्बे
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त्रिदंडी गोस्वामी
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
संस्थापक-आचार्य:
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
केन्द्र: हरे कृष्ण लैंड,
गांधी ग्राम रोड,
जुहू, बॉम्बे 54
1 मई, 1974
मेरे प्रिय महात्मा दास,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा 20 अप्रैल, 1974 का पत्र मिला और मैंने इसे पढ़ा है।
वानप्रस्थ के लिए ग्रहस्थ जीवन त्यागने की तुम्हारी इच्छा के संदर्भ में मैं ककहना चाहता हूँ कि तुम ऐसा कर सकते हो औऱ संकीर्तन यात्रा में जाकर अपना समय सकारात्मक रूप से व्यतीत कर सकते हो। लेकिन ऐसा केवल तभी जब मन्दिर प्रधान ऐसा करने का सुझाव दें और जब ऐसी मंडली ले जाने की सुविधा हो। सन्न्यास ग्रहण करना, एक प्रकार से, एक औपचारिकता ही है। मैं एक वानप्रस्थ के रूप में आठ-नौ साल तक प्रचार और लेखन कर रहा तथा और फिर 1959 में मैंने सन्न्यास लिया। तो यदि वानप्रस्थ जीवन कुछ वर्षों के पश्चात तुम्हारा आचरण आदर्श स्तर का हो, तो सन्न्यास पर विचार किया जा सकता है। यदि तुम वास्तव में यात्रा मंडली निकालने को गंभीर हो, तो पुस्तक वितरण ही तुम्हारी मुख्य गतिविधि होनी चाहिए। प्रचार की इस सबसे बलिष्ठ प्रणाली के माध्यम से हम तुम्हारे देश में बहुत प्रभावशाली बन रहे हैं औऱ लोग बहुत ध्यानपूर्वक पुस्तकें पढ़ रहे हैं और कृष्णभावनामृत के महत्व को समझ रहे हैं। एक यात्रिक संकीर्तन मंडली ले जाने के लिए न तो तुम्हारा सन्न्यासी होना आवश्यक है और न ही वानप्रस्थ। तुम्हारे देश में यात्रा मंडलियां सभी आश्रमों में स्थित भक्तों द्वारा निकाली जा रही हैं। भगवान चैतन्य ने शिक्षा दी है कि जब तक कोई व्यक्ति संपूर्ण रूप से कृष्ण की सेवा में रत है, हम इस बात पर कोई महत्व नहीं देते हैं कि क्या वह सन्यासी है, गृहस्थ है या फिर कुछ और। इसीलिए स्वतंत्र रूप से कार्य मत करो। पर यदि सुविधा है तो तुम बाहर रहकर पुस्तकें विकरण कर सकते हो और संकीर्तन मंडली के साथ यात्रा कर सकते हो, जैसा कि तुम्हें पहले से ही अनुभव है।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
(अहस्ताक्षरित)
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एसडीजी
3303 दूसरा एवेन्यू
सैन डिएगो, कैलिफोर्निया 92103
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