HI/750212b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मेक्सिको में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो भगवद गीता इस तत्त्व से शुरू होता है, कि व्यक्ति को पता होना चाहिए कि वह यह भौतिक शरीर नहीं है। वर्तमान समय में पूरे विश्व में इस ज्ञान की कमी है। हाँ। हर कोई इस शरीर को जानवरों की तरह अपनी पहचान बना रहा है। इसलिए कृष्ण ने अर्जुन को ताड़ते हुए यह कहा कि "आपके पास जीवन की पशुवत अवधारणा है, और फिर भी आप एक बहुत पांडित्य पूर्ण विद्वान की तरह बोल रहे हैं। कोई पांडित्य पूर्ण विद्वान इस शरीर के लिए शोक नहीं करता है।" भगवद गीता में कहा गया है, धीरस तत्र न मुह्यति (भ. गी. २.१३)। धीरा . . . धीरा का अर्थ है जो ज्ञान से गंभीर बन गया है। वह विक्षुब्ध नहीं है।"
750212 - प्रवचन भ. गी. ०२.१२ - मेक्सिको