HI/750221b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद कराकस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवान का दूसरा नाम "अजन्मा" है। अजन्मे का अर्थ है कि वह किसी पिता से पैदा नहीं हुआ है। यह वैदिक भाषा में कहा गया है, कि अद्वैतं अच्युतम . . . गोविंदम आदि-पुरुषम। ईश्वरः परमः कृष्णः सत-चित-आनंद-विग्रह:, अनादिर आदि: (ब्र. सं. ५.१) अनादि का अर्थ है कि उसके उत्सर्जन का कोई स्रोत नहीं है। लेकिन वह आदि है; वह सबका मूल स्रोत है। इसलिए यह कहा जाता है, अनादिर आदि। अनादि का अर्थ है कि वह बिना किसी स्रोत के है, लेकिन हर कोई किसी स्त्रोत की वजह से है । अब, यह सरल प्रज्ञा है। भगवान को समझने में कोई कठिनाई नहीं है। अनादिर आदि: सभी को आदि मिला है। जैसे मुझे मेरे पिता मिले हैं, पिता को अपने पिता, उनके पिता, उनके . . . आदि। आदि का अर्थ है मूल स्रोत। लेकिन जब आप कृष्ण, या भगवान के पास जाते हैं, तो उनका कोई आदि नहीं है। वह आत्मनिर्भर है। भगवान को समझने के सरल सूत्र को समझने की कोशिश करें, कि भगवान की कोई उत्पत्ति नहीं है, लेकिन वे सबका मूल हैं।"
750221 - प्रवचन श्री. भा. ०१.०१.०१ - कराकस