"जीवन की वास्तविक प्रगति यह जानना है कि ईश्वर क्या है और उसके साथ मेरा क्या संबंध है और उस रिश्ते में कैसे कार्य करना है। यह वास्तविक जीवन है। लेकिन वे इसे नहीं जानते हैं। न ते विदुः स्वार्थ-गतिम् हि विष्णुम (श्री. भा. ७.५.३१)। वे इसे नहीं जानते। वे सोचते हैं, "इस योग अभ्यास से, मैं परिपूर्ण हो जाऊंगा, मेरी भौतिक स्थिति में सुधार होगा," और इसी तरह, इसी तरह। उनके अपने सिद्धांत हैं और . . . लेकिन यह जीवन की प्रगति नहीं है। कई अमीर आदमी हैं, कई कर्मी हैं। योग का अभ्यास किए बिना उन्हें भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। इसलिए आध्यात्मिक जीवन का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति भौतिक, बद्ध जीवन में सुधार करता है। आध्यात्मिक जीवन का अर्थ है आध्यात्मिक उन्नति। लेकिन लोग यह मानते हैं कि "धर्म को अपनाने का अर्थ है हमारे भौतिक जीवन को गति देना।" धर्म अर्थ काम मोक्ष (श्री .भा. ४.८.४१, चै. च. आदि १.९०)। और जब वे हताश हो जातें हैं, तो वे मोक्ष चाहते हैं।"
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