HI/750306 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"वैदिक साहित्य को समझने का मतलब है कि कृष्ण में दृढ़ विश्वास और गुरु में दृढ़ विश्वास होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि "मेरे गुरु इतने विद्वान नहीं हैं, इसलिए मैं सीधे कृष्ण का आश्रय लूँगा।" यह बेकार है। वह बेकार है। चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, गुरु -कृष्ण-कृपा पाया भक्ति-लता-बीज ([[|Vanisource:CC Madhya 19.151|चै. च. मध्य १९.१५१]])। कोई व्यक्ति भक्ति के पौधे या लता का बीज प्राप्त कर सकता है, कैसे? गुरु-कृष्ण-कृपा। गुरु की कृपा से और कृष्ण की कृपा से, कृष्ण-कृपा से नहीं। पहले गुरु-कृपा, फिर कृष्ण-कृपा।
तो इस ब्राह्मण ने चैतन्य महाप्रभु का ध्यान आकर्षित किया। वह अनपढ़ था, और वह एक शब्द भी नहीं पढ़ सकता था। इसमें सच्चाई क्या है? वही बात: गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, चित्तत्ते कोरिया ऐक्य। उन्होंने गुरु के आदेश को बहुत गंभीरता से लिया, कि "मेरे गुरु महाराज ने मुझे आदेश दिया है, और मुझे इसे पूरा करना होगा। कोई बात नहीं मैं पढ़ नहीं सकता। मुझे पन्ने खोलने और देखने दो।" |
750306 - प्रवचन श्री. भा. ०१.१५.२७ - न्यूयार्क |