"तो कृष्ण को सभी के द्वारा गुरु स्वीकार किया जाता है। हमारे आचार्यों द्वारा, हाल के आचार्यों द्वारा, रामानुजाचार्य, मधवाचार्य . . . मैं उस आवारा श्रेणी की बात नहीं कर रहा, अपितु उन मान्यता-प्राप्त आचार्यों की, शंकराचार्य . . . उन्होंने कृष्णा को परम गुरु के रूप में स्वीकार किया। चैतन्य महाप्रभु। तो कृष्ण को सर्वोच्च गुरु के रूप में स्वीकार करें और उनके निर्देश का पालन करें और दूसरों को यकीन दिलाने की कोशिश करें। "अन्य" का अर्थ है, भले ही आपके परिवार के सदस्य हों। यही जीवन की सफलता है, संसिद्धि हरि-तोषंम। आपको अपना जीवन अंधे की भांति क्यों जीना चाहिए? यह मानव जीवन प्रबोधन, सर्वोच्च प्रबोधन के लिए है, और यह सर्वोच्च प्रबोधन है: भगवद गीता की शिक्षाओं को समझना और जहाँ तक हो सके इसका प्रचार करना। यदि नहीं, तो आप अपने परिवार के सदस्यों के बीच प्रचार कर सकते हैं। यह जीवन की पूर्णता है।"
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