HI/750405 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आम तौर पर, आप जानते हैं, ब्रह्मा श्रष्टिकर्त्ता है . . . वह भी ईश्वर है। उसने इस ब्रह्मांड को बनाया है। लेकिन वह सर्वोच्च ईश्वर नहीं है। वह गर्भोदकशायी विष्णु द्वारा बनाया गया है। वह भी ईश्वर है, लेकिन वह महा-विष्णु का विस्तार है। फिर वह भी ईश्वर है। फिर वह संकर्षण का भी विस्तार है। फिर संकर्षण नारायण का विस्तार है। इस तरह, आप आगे बढ़ते-बढ़ते, खोजते हैं। जब आप इस निष्कर्ष पर आते हैं कि ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानंद विग्रहः, अनादि . . . (ब्र. सं. ५.१)।

तो उसका कोई आदि नहीं है। अनादिर आदि: "वह सभी का शुरुआत है, लेकिन उसका कोई शुरुआत नहीं है।" यह कैसा है, वह? वह नहीं . . . ? इतने ईश्वरों की शुरुआत है। और क्यों? अब, स्वराट। यही . . . है। स्वराट, पूरी तरह से स्वतंत्र । जन्मादि अस्य यत: (श्री. भा. १.१.१)। यह वेदांत-सूत्र है। और यह वेदांत-सूत्र-भाष्य द्वारा समझाया गया है, जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वराट् (श्री. भा. १.१.१)। स्वराट-यह ईश्वर है; यह सर्वोच्च ईश्वर है। उसका कोई ईश्वर नहीं है। सभी का ईश्वर है, लेकिन कृष्ण का कोई ईश्वर नहीं है। वह परम, पुरुषोत्तम है।"

750405 - प्रवचन चै. च. आदि ०१.१२ - मायापुर